छले जाते हैं English Medium में बच्चे

बिना समझे ही पास हो जाते हैं कई क्लास
Englishभिलाई। English Medium दरअसल बच्चों के साथ एक छलावा है। जब तक अंग्रेजी समझ में आने लगती है तब तक वे कई क्लास पास हो चुके होते हैं। इन क्लासों की अधिकांश पढ़ाई उन्हें याद नहीं रहती। जबकि हिन्दी या मातृभाषा में पढऩे वाले बच्चों के साथ ऐसा नहीं होता। विषय की बेहतर समझ उन्हें सफलता दिलाती है। यह कहना है कि बीएसपी स्कूल रूआबांधा से जुड़े मनोज कुमार स्वाईं का। वे कहते हैं कि सीबीएसई के अंग्रेजी स्कूलों में अधिकांश बच्चे आठवीं तक केवल रट्टा मारकर पास होते हैं। वहीं हिन्दी या अपनी मातृभाषा में पढऩे वाले बच्चों में विषय की समझ बेहतर होती है। मनोज बताते हैं कि इन्हीं कक्षाओं में उसे भूगोल और इतिहास की जानकारी दी जाती है। विज्ञान की नींव भी इन्हीं कक्षाओं में रखी जाती है।मनोज ने बताया कि इंग्लिश मीडियम के अधिकांश स्कूल केवल शिक्षा के बाजारीकरण का लाभ उठा रहे हैं। अधिकांश में ढंग के टीचर्स नहीं हैं, अनेक स्कूलों के प्राचार्य हास्यास्पद अंग्रेजी बोलते हैं। ये केवल लोगों के इंग्लिश मीडियम का शौक पूरा करते हैं। जबकि 50-60 पहले सरकारी स्कूलों में हिन्दी, बंगला, मलयालम या ओडिया मीडियम से शिक्षा प्राप्त करने वाले भी अच्छी अंग्रेजी बोलते और लिखते थे।
श्री मनोज ने बताया कि उन्होंने बच्चों को उनकी ही भाषा में पढ़ाने का एक फार्मूला तैयार किया और इसे अनेक स्कूलों में आजमाया भी। उन्होंने गणित जैसे गूढ़ विषय पर भी प्रयोग किए तथा दो घंटे का एक ऐसा पैकेज तैयार कर लिया जिससे बच्चे 6 से 8वीं तक का गणित हल कर लेते हैं। इस पैकेज का उन्होंने पूर्वी छत्तीसगढ़ एवं पश्चिमी ओडीशा के 30 गांवों में सफल प्रयोग किया।
लर्निंग प्रोसेस की चर्चा करते हुए श्री मनोज ने बताया कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है। बच्चा एक या दो भाषा सुनकर ही सीख लेता है और उसमें पारंगत भी हो जाता है। इस भाषा में उसे जो कुछ भी सिखाया जाए, वह जल्दी सीखता है और याद भी कर लेता है। अकसर यही भाषा उसकी थॉट प्रोसेस की भी भाषा होती है।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजी को लेकर हमारे मन में कई प्रकार के पूर्वाग्रह हैं। हमें लगता है कि ज्यादा वर्षों तक इंग्लिश पढऩे से इंग्लिश स्ट्रांग हो जाती है जबकि ऐसा नहीं है। इंग्लिश मीडियम के बहुत से बच्चों को 12वीं पास करने के बाद भी अंग्रेजी बोलनी नहीं आती। जबकि मातृभाषा या सार्वजनिक भाषा में पढ़ा हुआ बच्चा इतना कुशाग्र बुद्धि हो जाता है कि वह जब चाहे अंग्रेजी सीख भी लाता है और फर्राटे से बोलने भी लगता है।
मनोज बताते हैं कि अंग्रेजी को लेकर लोगों में व्याप्त पूर्वाग्रह को समाप्त करना जरूरी है। पब्लिक स्कूलों का चलन इसलिए शुरू हुआ था कि सरकारी स्कूलों का स्तर गिर गया था। यदि हम सरकारी और हिन्दी मीडियम के स्कूलों का स्तर सुधार लें तो लोगों को महंगी शिक्षा की एक बहुत बड़ी मुसीबत से मुक्ति मिल जाएगी। श्री स्वाईं ने अपने एक बच्चे को भी हिन्दी मीडियम में डाला है ताकि लोग प्रेरित हो सकें।
मनोज ने बताया कि इंग्लिश मीडियम के अधिकांश स्कूल केवल शिक्षा के बाजारीकरण का लाभ उठा रहे हैं। अधिकांश में ढंग के टीचर्स नहीं हैं, अनेक स्कूलों के प्राचार्य हास्यास्पद अंग्रेजी बोलते हैं। ये केवल लोगों के इंग्लिश मीडियम का शौक पूरा करते हैं। जबकि 50-60 पहले सरकारी स्कूलों में हिन्दी, बंगला, मलयालम या ओडिया मीडियम से शिक्षा प्राप्त करने वाले भी अच्छी अंग्रेजी बोलते और लिखते थे।

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