कैंसर को मात देकर Anurag Basu बनाते रहे फिल्में
भिलाई। ‘बर्फी, लाइफ इन अ मेट्रो, ‘ गैंगस्टर’ और ‘जग्गा जासूस’ जैसी फिल्में देने वाले युवा फिल्ममेकर अनुराग बासू का मानना है कि यदि आपका लक्ष्य स्पष्ट है तो कोई भी आपके और आपके लक्ष्य के बीच नहीं आ सकता। आपका पता होना चाहिए कि आपको कहां जाना है तो आप हर रुकावट को मात देते हुए आगे बढ़ सकते हो। अनुराग यहां संतोष रूंगटा ग्रुप के कैम्पस में आयोजित टेड एक्स आरसीईटी में अपने अनुभव साझा कर रहे थे। उन्होंने बताया कि किस तरह उन्होंने चुनौतियों और रुकावटों का सामना करते हुए बॉलीवुड में अपनी जगह बनाई। इस बीच वे अचानक बीमार पड़ गए। मुंह में छाले हो गए और उनसे खून रिसने लगा। उन्हें मुम्बई के लीलावती अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। यहां लोग उनसे मिलने आते और चुपचाप उन्हें फल आदि देकर चले जाते। कोई माथा सहला देता कोई कंधा थपथपा जाता। ऐसे में एक दिन प्रख्यात फिल्मकार महेश भट्ट उन्हें सांत्वना देते देते रो पड़े। तब उन्हें पता चला कि उन्हें कैंसर ने जकड़ लिया है और चिकित्सक उन्हें 2-4 महीने का मेहमान बता रहे हैं।
अनुराग बताते हैं कि उन्हें श्री भट्ट को तसल्ली दी कि यह एक बीमारी ही है और ठीक भी हो जाएगी। घबराने की कोई बात नहीं है। उन्होंने अस्पताल के बिस्तर पर ही लाइफ इन मेट्रो और गैंगस्टर की स्क्रिप्ट का काम पूरा किया। बिस्तर पर लेटे लेटे ही उन्होंने फिल्म तुमसा नहीं देखा की शूटिंग पूरी की। वे कीमो लेते और फिर सेट पर पहुंच जाते। इस बीच हालत बिगडऩे पर उन्हें टाटा मेमोरियल अस्पताल शिफ्ट कर दिया गया। लीलावती से टीएम जाते वक्त उनकी गाड़ी ट्रैफिक जाम में फंस गई। वे चुपचाप अपनी सांसों पर ध्यान केन्द्रित किए रहे। ट्रैफिक जाम की इस उलझन को उन्होंने बाद में एक फिल्म में भी दिखाया।
बहरहाल कैंसर को मात देने के बाद उन्होंने एक के बाद एक सफल फिल्में दीं। हर फिल्म में कुछ नया किया और अपने उस काम को करते चले गए जो उनकी पहली प्राथमिकता थी।
अनुराग कहते हैं कि आपको पता होना चाहिए कि आप क्या करना चाहते हैं। बीएसपी सीनियर सेकण्डरी स्कूल सेक्टर-4 के स्टूडेंट अनुराग की जिन्दगी भी कुछ अलग नहीं थी। स्कूल जाना, कभी श्री चांदवानी सर तो कभी श्री व्यास सर के घर साइकिल से ट्यूशन जाना। इसके अलावा कृष्णा कोचिंग जाकर इंजीनियर बनने की तैयारी करना। इसीके बीच समय निकालकर वे थिएटर का अपना शौक पूरा करते। 12वीं के बाद जब उन्होंने अपने माता पिता से कहा कि वे फिल्म इंस्टीट्यूट ज्वाइन करना चाहते हैं तो थोड़ी ना-नुकुर के बाद उन्हें अनुमति मिल गई। उन्होंने अपने इस फैसले को पूरी शिद्दत से निभाया और उन्हें आज गर्व है कि उन्होंने यह निर्णय लिया।
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