10 incarnations of drama

नाट्य कलाकारों के दशावतार (पांचवी एवम् अंतिम किश्त)

10) कल्कि अवतार – हिंदू मान्यताओं के अनुसार अभी कलयुग चल रहा है लेकिन कल्कि अवतार हुआ नहीं है। पर नाट्य कलाकारों के दशावतार में कल्कि संस्करण उपलब्ध हो गया है। आधुनिक कल्कि अवतार कलाकार को सब कुछ तुरंत (instant) चाहिए, श्रद्धा और सबूरी उसमें है ही नहीं। वो एक नाटक में काम करके सब कुछ हासिल कर लेना चाहता है। उसे एक नाटक में काम करके गाना, बजाना, अभिनय, नृत्य सबमें महारत हासिल करके मुंबई जाकर सलमान और शाहरुख बन जाना है। ऊसके लिए नाट्य कला महज़ संवाद अदायगी ही है। इस तरह के कल्कि अवतार आए दिन संस्थाओं में आया राम गया राम होते रहते है। मुंबई में दौड़ लगाने पर जब कई धक्के लगते हैं और इनकी समझदानी का विकास होता है, तब तक चिड़िया खेत चुग गई होती है।
11) शक्ति स्वरूपा महिला पात्र – मान्यताओं से हटकर ये नाट्यकर्मियों के विकास की सोपान है। महिला पात्र की नाट्य उपयोगिता पर विद्वानों के अनेकानेक मतभेद हैं। हम उन पर चर्चा न करते हुए अपने विषय पर आते हैं।
आजकल कई गरीब नाट्य संस्थाये महिला पात्र को पा ल ने की हैसियत नहीं रख पाती हैं। लिहाजा इस आर्थिक, सामाजिक आकाल की स्थिती में वे बिना महिला पात्र वाला नाटक ढूंढती रहती हैं या नाटक करना बंद कर देती हैं। ये है महिला कलाकार की उपयोगिता। जो संस्थाएं अपने नाटकों में दो या उससे ज्यादा महिला कलाकार रखने की हैसियत रखते हैं, उन्हे समाज में बड़े आदर की दृष्टि से देखा जाता है। उनके शो की टिकट पूरी बिक जाती है।
उनकी संस्था में सुंदर, सुशील, गृहकार्य में दक्ष लड़कों की लाइन लगी रहती है।
“नाटक नहीं’ नाटक में स्वर्गीय लक्ष्मीकांत वैष्णव लिखते हैं
“स्त्री के आकार मात्र में सम्मोहन होता है उसके आवाज़ में सम्मोहन होता है, उसके चाल में सम्मोहन होता है। उसकी उपस्थिति में आदमी , आदमी नहीं रह जाता बल्कि एक अदृश्य शक्ति द्वारा संचालित एक कठपुतली मात्र हो जाता है।
वो क्या कर रहा है , उसे कुछ पता नहीं चलता। वो क्या सोच रहा है उसे कुछ मालूम नहीं होता।
वैष्णव जी के इस प्रमेय से ये सिद्ध होता है कि महिला कलाकार का यही प्रभाव दर्शक दीर्घा को भी प्रभावित करता है। इसलिए क्या करें हम रंगकर्मी? उनके सारे नाज़ – नखरों के बावजूद सारा रंगकर्म उनके आगे नतमस्तक है।
बस इतना ही……।
(समाप्त)

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