कोरबा। छत्तीसगढ़ अंचल में अनेक किंवदंतियां प्रचलित हैं। इनमें अनेक असुरों के अंत की कथाएं हैं। इन्हीं में से एक कथा है भस्मासुर की। भस्मासुर ने जब अपने आराध्य शिवजी पर ही हमला कर दिया तो भगवान विष्णु को बीच में आना पड़ा। छल से उन्होंने भस्मासुर को ही भस्म कर दिया। जिस पहाड़ पर यह घटना घटी वह छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के पाली तहसील में स्थित है।
कोरबा जिला मुख्यालय से लगभग 78 किलोमीटर पश्चिम में मैकल पर्वत श्रृंखला के बीच बसा है चैतुरगढ़। यहां मैकल श्रेणी अपनी सर्वाधिक ऊंचाई लिए है। चैतुरगढ़ को लाफागढ़ भी कहा जाता है। समुद्र तल से लगभग 3060 फीट की ऊंचाई पर चैतुरगढ़ का किला है। चारों तरफ हरी-भरी पहाड़ियां हैं। इन खूबसूरत वादियों का तापमान ग्रीष्म में भी 28 डिग्री से ज्यादा नहीं होता। इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का कश्मीर भी कहा जाता है। चैतुरगढ़ बिलासपुर-कोरबा रोड पर बिलासपुर से लगभग 74 किलोमीटर दूर है। यहां केवल सड़क मार्ग से ही आया जा सकता है। सबसे करीबी शहर पाली (20 किलोमीटर) है, जहां ठहरने की व्यवस्था है।
पहाड़ी पर एक प्राचीन किला और महिषासुर मर्दिनी का मंदिर है। किले का निर्माण 8वीं शताब्दी में हैहयवंशी राजा शंकरदेवा ने किया था। पहाड़ी के ऊपर लगभग 5 वर्ग किलोमीटर का एक समतल भाग है। यहां महिषासुर मर्दिनी (दुर्गा) का मंदिर है और उससे लगभग तीन किलोमीटर दूर चैतुरगढ़ की प्रसिद्ध गुफाएं हैं। इसके आसपास प्राकृतिक झरने हैं जो इस स्थल और मनोरम बनाते हैं। गुफा का मुख काफी चौड़ा है जो आगे जाकर दो भागों में विभक्त हो जाता है। इनमें से एक शिवजी को समर्पित है जिसे शंकर गुफा भी कहते हैं। यह लगभग 25 मीटर लंबी है। गुफा बेहद संकरी है। झांकने पर गुफा में घुप्प अंधेरे में दीपक की लौ का अलौकिक दृश्य दिखाई देता है। यहां कुछ पुजारियों का भी वास है।
जनश्रुति के अनुसार भस्मासुर ने शिवजी की कठिन तपस्या कर उनसे एक ऐसा वरदान मांग लिया जो स्वयं शिवजी के लिए ही समस्या बन गई। भस्मासुर को वरदान था कि वह जिस पर हाथ रख देगा वह भस्म हो जाएगा। वरदान मिलने के बाद उसकी मति भ्रष्ट हो गई। वह शिवजी को ही भस्म करने के लिए उनके पीछे दौड़ा। तब बीच बचाव के लिए भगवान विष्णु को आना पड़ा। उन्होंने मोहिनी रूप धारण कर भस्मासुर को अपने पीछे लगा लिया। शिवजी दौड़ते हुए एक गुफा में घुस चुके थे। भगवान विष्णु ने भस्मासुर को दूसरी गुफा में उलझा लिया। मोहिनी रूप में वे नृत्य करते रहे और भस्मासुर को भी नाचने पर मजबूर कर दिया। नृत्य करते करते मोहिनी रूप धारी भगवान विष्णु ने अपना हाथ सिर पर रख लिया। मूर्ख भस्मासुर इस चाल को समझ नहीं पाया और उसने भी अपने सिर पर हाथ रख लिया और भस्म हो गया।
इस पहाड़ी पर भगवान श्रीविष्णु ने जहां भस्मासुर का अंत किया वहीं भगवती मां दुर्गा ने महिषासुर को मार गिराया। यहां महिषासुर मर्दिनी की 18 भुजाओं वाली प्रतिमा है जो संभवतः मां दुर्गा की एकमात्र ऐसी प्रतिमा है।
कैसे पहुंचें – पाली निकटस्थ शहर है जो 20 किलोमीटर दूर है। कोरबा, अकलतरा, बिलासपुर से भी यहां सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। ठहरने के लिए वन विभाग का विश्राम गृह और कुछ निजी लॉज हैं।
कब आएं – नवम्बर से फरवरी तक यहां प्रकृति पूरे शबाब पर होती है।
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