स्वास्थ्य निदेशक ने डाक्टरों को दिखाया आईना
भिलाई। छत्तीसगढ़ के निदेशक स्वास्थ्य सेवाएं आर प्रसन्ना ने डाक्टरों को आईना दिखाते हुए कहा है कि इन सबको सुख रोगों ने जकड़ लिया है। ये बड़े शहरों को छोडऩे का साहस नहीं कर पाते और बहाने बनाते हैं। यदि हालात ऐसे ही रहे तो मिशन 2020 : आईएमआर 20 सिर्फ नारा बनकर रह जाएगा। श्री प्रसन्ना भिलाई इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में छत्तीसगढ़ अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स द्वारा आयोजित दो दिवसीय कांफ्रेंस सीजी पीडीकॉन-2016 के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। प्रमुख सचिव स्वास्थ्य सुब्रत साहू कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे।
उन्होंने कहा कि सीजीएपी ने 2020 तक राज्य में नवजात मृत्यु दर आईएमआर को 20 करने का लक्ष्य रखा है किन्तु यह तब तक संभव नहीं है जब तक चिकित्सक वनांचलों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने के लिए तैयार न हों।
स्वास्थ्य निदेशक ने कहा कि शासन ने बीजापुर, दंतेवाड़ा, सुकमा, सरगुजा जैसे दूरस्थ अंचलों में अच्छी अधोसंरचना विकसित की है। यहां के आपरेशन थिएटर शहर के निजी अस्पतालों से बेहतर हैं। सरकार वहां जाकर अपनी सेवाएं देने वाले चिकित्सकों को शहरी क्षेत्रों के मुकाबले 3 से 4 गुना तक वेतन भत्ते देने को तैयार है। इसके अलावा कॉमन मेस, फुल फर्निश्ड सिंगल और फैमिली अकोमोडेशन भी तैयार है। यहां जिम, स्पोट्र्स काम्पलेक्स और स्विमिंग पूल भी हैं और उनका उपयोग करने के लिए वक्त भी निकल आता है। पर छत्तीसगढ़ के डॉक्टर वहां जाना नहीं चाहते।
श्री प्रसन्ना ने कहा कि अभी हालत यह है कि उत्तर प्रदेश, चेन्नई, तेलंगाना से चिकित्सक बीजापुर, दंतेवाड़ा, सुकमा की स्वास्थ्य सेवाओं को संभाले हुए हैं। उन्होंने पूछा, जब वो यहां आकर काम कर सकते हैं तो छत्तीसगढ़ के डाक्टर क्यों नहीं?
नक्सली खतरे को बकवास बताते हुए उन्होंने कहा कि वे स्वयं कोयम्बटूर से हैं और निदेशक बनने से पहले 8 साल बस्तर में अपनी सेवाएं दे चुके हैं और अब तक जिन्दा हैं। यदि उन्हें आज भी मौका मिला तो वे दोबारा उस स्वर्ग में जाना चाहेंगे जहां प्रदूषण कम है, प्रकृति की छटा है और काम करने का मौका भी।
शहरी जिन्दगी पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि यहां प्रदूषण है, कभी भी सड़क हादसे में मर जाने का खतरा है, पैसा है पर जिम या स्विमिंग पूल जाने का समय नहीं है। यह भी कोई जिन्दगी है।