विलक्षण प्रतिभा के धनी डॉ शांतिस्वरूप भटनागर

पद्मभूषण डॉ शांतिस्वरूप भटनागर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आज उनका जन्मदिवस है। एक प्रख्यात रसायनशास्त्री के रूप में उन्होंने समाज को अपना योगदान देने के साथ ही कविताओं के माध्यम से भी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। आजाद भारत में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की स्थापना, श्री भटनागर की अध्यक्षता में की गयी। इन्हें सी.एस.आई.आर का प्रथम महा-निदेशक बनाया गया। इन्हें शोध प्रयोगशालाओं का जनक कहा जाता है।
Dr. Shanti Swaroop Bhatnagar

पद्मभूषण डॉ शांतिस्वरूप भटनागर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आज उनका जन्मदिवस है। एक प्रख्यात रसायनशास्त्री के रूप में उन्होंने समाज को अपना योगदान देने के साथ ही कविताओं के माध्यम से भी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। आजाद भारत में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की स्थापना, श्री भटनागर की अध्यक्षता में की गयी। इन्हें सी.एस.आई.आर का प्रथम महा-निदेशक बनाया गया। इन्हें शोध प्रयोगशालाओं का जनक कहा जाता है। इन्होंने भारत में कुल बारह राष्ट्रीय प्रयोगशालाएं स्थापित कीं, जिनमें प्रमुख हैं-
केन्द्रीय खाद्य प्रोसैसिंग प्रौद्योगिकी संस्थान, मैसूर,
राष्ट्रीय रासायनिकी प्रयोगशाला, पुणे,
राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला, नई दिल्ली,
राष्ट्रीय मैटलर्जी प्रयोगशाला, जमशेदपुर,
केन्द्रीय ईंधन संस्थान, धनबाद, इत्यादि।
इनकी मृत्यु के उपरांत, सी.एस.आई.आर ने कुशल वैज्ञानिकों हेतु, इनके सम्मान में; भटनागर पुरस्कार की शुरुआत की घोषणा की। शांति स्वरूप भटनागर को विज्ञान एवं अभियांत्रिकी क्षेत्र में पद्म भूषण से 1954 में सम्मानित किया गया।
सर शांति स्वरूप भटनागर का जन्म 21 फरवरी 1894 को शाहपुर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। इनके पिता परमेश्वरी सहाय भटनागर की मृत्यु तब हो गयी थी, जब ये केवल आठ महीने के ही थे। इनका बचपन अपने ननिहाल में ही बीता। इनके नाना एक इंजीनियर थे, जिनसे इन्हें विज्ञान और अभियांत्रिकी में रुचि जागी। इन्हें यांत्रिक खिलौने, इलेक्ट्रानिक बैटरियां और तारयुक्त टेलीफोन बनाने का शौक रहा। इन्हें अपने ननिहाल से कविता का शौक भी मिला और इनका उर्दु एकांकी करामाती प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाया था।
भारत में स्नातकोत्तर डिग्री पूर्ण करने के उपरांत, शोध फैलोशिप पर, ये इंगलैंड गये। इन्होंने युनिवर्सिटी कालेज, लंदन से 1921 में, रसायन शास्त्र के प्रोफेसर फ्रेड्रिक जी डोन्नान की देख रेख में, विज्ञान में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। भारत लौटने के बाद, उन्हें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से प्रोफेसर पद हेतु आमंत्रण मिला। सन 1941 में ब्रिटिश सरकार द्वारा इनकी शोध के लिये, इन्हें नाइटहुड से सम्मानित किया गया। 18 मार्च 1943 को इन्हें फेलो आफ रायल सोसायटी चुना गया। इनके शोध विषय में एमल्जऩ, कोलाय्ड्स और औद्योगिक रसायन शास्त्र थे। परन्तु इनके मूल योगदान चुम्बकीय-रासायनिकी के क्षेत्र में थे। इन्होंने चुम्बकत्व को रासायनिक क्रियाओं को अधिक जानने के लिये औजार के रूप में प्रयोग किया था। इन्होंने प्रो आर.एन.माथुर के साथ भटनागर-माथुर इन्टरफ़ेयरेन्स संतुलन का प्रतिपादन किया था, जिसे बाद में एक ब्रिटिश कम्पनी द्वारा उत्पादन में प्रयोग भी किया गया। इन्होंने एक सुन्दर कुलगीत नामक विश्वविद्यालय गीत की रचना भी की थी। इसका प्रयोग विश्वविद्यालय में कार्यक्रमों के पहले होता आया है।
देश ने अपने इस लाड़ले प्रतिभाशाली संतान को 1 जनवरी 1955 को खो दिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *