एमजे कालेज में समलैंगिक पर संगोष्ठी : हर युग में इन्होंने छोड़ी है अपनी छाप
भिलाई। समलैंगिक संभवत: सृष्टि के आरंभ से ही हैं। भारतीय शास्त्रों एवं ग्रंथों में इनका उल्लेख प्रत्येक युग में हुआ है। त्रेता युग में जब श्रीराम वनवास के लिए निकलते हैं तो नदी तट पर वृहन्नलाएं उनके इंतजार में खड़ी मिलती हैं। महाभारतकाल में धनुर्धर अर्जुन का वृहन्नलारूप और शिखण्डी भी इसी के रूप हैं। स्वयं सदाशिव की कल्पना भी अर्धनारीश्वर के रूप में की गई है। पर कलियुग में ये घोर उपेक्षा, उत्पीड़न और वंचना की शिकार हुई हैं। इसी विषय को गहराई से समझने के लिए एमजे कालेज में एक दिवसीय गोष्ठी का आयोजन किया गया। आयोजन में महाविद्यालय की डायरेक्टर श्रीमती श्रीलेखा विरुलकर, प्राचार्य डॉ के.एस. गुरुपंच के अलावा विशिष्ट अतिथि अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्रीमती सुरेशा चौबे, उपस्थित रहीं। आमंत्रित वक्ताओं में ट्रांसजेंडर वेलफेयर सोसायटी की विद्या राजपूत, सोनू गुप्ता, पूजा चौधरी, रवीना बरीहा आदि उपस्थित रहीं।