भूमकाल विद्रोह की अकादमिक व्याख्या से आईजी डांगी ने जताई असहमति

Bhumkal is not what many people thinkभिलाई। बस्तर में 1910 के भूमकाल विद्रोह की अकादमिक व्याख्या से आईजी दुर्ग रेंज रतन लाल डांगी ने असहमति जताई है। उन्होंने कहा कि भूमकाल विद्रोह का आदिवासियों के कथित शोषण से कोई लेना देना नहीं था। यह आदिवासी अंचल में बाहरी लोगों के प्रवेश का विरोध था। आईजी डांगी यहां पुलिस विभाग की अधिकारी डॉ सुजाता दास लिखित शोध परक पुस्तक ब्रिटिश युगीन बस्तर के विमोचन समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे। गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू के मुख्य आतिथ्य में आयोजित इस समारोह में डॉ दास के शोध निदेशक डॉ एमए खान ने ब्रिटिश कालीन बस्तर में परिवर्तन और प्रतिरोध पर अपना वक्तव्य रखा था।
Dr Ratan Lal Dangiआईजी डांगी ने कहा कि दरअसल वनाच्छादित बस्तर प्राचीन काल से भगोड़ों की शरणस्थली रहा है। भोपालपटनम इस अंचल का प्रवेश द्वार रहा है। राजा अन्नमदेव भी दक्षिण से आकर भोपालपटम से होते हुए बस्तर पहुंचे थे। इसी द्वार से बाद में अंग्रेजों का प्रवेश हुआ। दो-तीन दशक पहले नक्सलियों ने भी भोपालपटनम से ही बस्तर में प्रवेश किया और इसे अपनी शरणस्थली बनाया। उन्होंने आदिवासियों के शोषण से आंशिक सहमति जताते हुए कहा कि स्थितियां बदल रही हैं। बदलाव हमेशा बुरा नहीं होता। अपनी बात को बल देने के लिए उन्होंने अंग्रेजों के समय यहां हुए परिवर्तनों को भी रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि उन दिनों माता दंतेश्वरी के मंदिर में नरबलि होती थी जिसे अंग्रेजों ने बंद करवाया। परिवर्तन में कुछ खामियां, कुछ दिक्कतें हो सकती हैं पर इसका अर्थ यह नहीं है कि परिवर्तन की अच्छाइयों और सामयिकता को ही नकार दें।
इससे पूर्व रविवि के सेवानिवृत्त इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉ एमए खान ने बताया कि अंग्रेजों ने बस्तर की प्रशासनिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक से छेड़छाड़ की जिसका आदिवासियों ने विरोध किया। इसी के फल स्वरूप 1876 से लेकर 1910 के भूमकाल विद्रोह तक अनेक विद्रोह हुए। उनका मानना था कि जब कमजोर किसी बलवान का विरोध करता है तो वह हर मिलने वाली सहायता का स्वागत करता है। माओवादियों ने इसी का फायदा उठाया।
कार्यक्रम में पुलिस अधीक्षक दुर्ग प्रखर पाण्डेय, रविवि के इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. नरेन्द्र नाथ मिश्र, पूर्व अध्यक्ष डॉ एमए खान एवं डॉ सुजाता दास मंचासीन थीं। संचालन सुप्रियो सेन ने किया।

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