बढ़ती उम्र में प्रोस्टेट कर सकता है परेशान, सावधानी से बचाव संभव : डॉ दारूका

भिलाई। बढ़ती उम्र में प्रोस्टेट आकार में बढ़ सकता है। इसके चलते पेशाब में रुकावट और जलन हो सकती है। युरोलॉजिस्ट से अविलंब जांच करवाकर रोग की पहचान की जा सकती है। जल्द पता लगने पर इसका पूर्ण उपचार किया जा सकता है। विलंब होने पर प्रोस्टेट जटिल कैंसर में परिवर्तित हो जाता है जिसका इलाज बेहद कठिन, लम्बा और महंगा हो सकता है। इससे बचाव के लिए पुरुषों को 40 की उम्र के बाद प्रतिवर्ष एक बार पीएसए की जांच करवानी चाहिए।भिलाई। बढ़ती उम्र में प्रोस्टेट आकार में बढ़ सकता है। इसके चलते पेशाब में रुकावट और जलन हो सकती है। युरोलॉजिस्ट से अविलंब जांच करवाकर रोग की पहचान की जा सकती है। जल्द पता लगने पर इसका पूर्ण उपचार किया जा सकता है। विलंब होने पर प्रोस्टेट जटिल कैंसर में परिवर्तित हो जाता है जिसका इलाज बेहद कठिन, लम्बा और महंगा हो सकता है। इससे बचाव के लिए पुरुषों को 40 की उम्र के बाद प्रतिवर्ष एक बार पीएसए की जांच करवानी चाहिए।आरोग्यम यूरोलॉजी एंड लिथोट्रिप्सी सेंटर के संचालक वरिष्ठ मूत्ररोग विशेषज्ञ डॉ नवीन राम दारूका ने बताया कि यह समस्या 40 की उम्र पार कर चुके पुरुषों में ज्यादा देखी जाती है। हालांकि इससे कम उम्र के लोगों में भी यह समस्या हो सकती है। प्रोस्टेट या पौरुष ग्रंथि अखरोट के आकार की एक संरचना है जो मूत्राशय के ठीक नीचे होती है और मूत्रनली को घेरे रहती है। यह प्रजनन प्रणाली का एक अंग है जो शुक्राणुओं को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
डॉ दारूका ने कहा कि प्रोस्टेट कैंसर पुरुषो में होने वाले सामान्य कैंसर रोगों में से एक है। प्रोस्टेट कैंसर की संभावना उम्र के साथ बढ़ती जाती है। शुरुवाती चरणों में पहचान होने पर प्रोस्टेट कैंसर को रोका जा सकता है। प्रोस्टेट कैंसर मृत्यु का भी कारण बन सकती है।
डॉ. दारूका ने बताया की प्रोस्टेट ग्रंथि का विकास दो चरणों में होता है। प्रथम चरण में यह युवावस्था तक विकसित होती है जबकि द्वितीय चरण में यह 40 वर्ष की आयु के बाद बढ़ने लगती है। इसे बीपीएच कहते हैं। बढ़ी हुई ग्रंथि पेशाब नली को दबाने लगती है, जिससे बार-बार पेशाब आना, पेशाब की धारा कमजोर होना, पेशाब का अधूरा होना तथा पेशाब में जलन, दर्द होना इत्यादि लक्ष्ण होते हैं।
Aarogyam-Urology-Lithotripsप्रोस्टेट ग्रंथि में संक्रमण, बीपीएच, प्रोस्टेट कैंसर आदि कई प्रकार की बीमारियां हो सकती हैं। बीपीएच तथा प्रोस्टेट कैंसर के लक्ष्ण लगभग समान होते हैं। पीएसए तथा डीआरइ जांच से प्रोस्टेट कैंसर की पहचान आसानी से की जा सकती है। प्रारंभिक चरणों में पहचान होने पर शल्यचिकित्सा के द्वारा पूर्ण उपचार किया जा सकता है। जानकारी के अभाव में मरीज अंतिम चरणों में आते हैं, तब तक कैंसर हड्डियों तक फैल चुका होता है। ऐसी स्थिति में अत्याधुनिक दवाइया तथा शल्यचिकित्सा से कैंसर को केवल बढ़ने से रोका जा सकता है।
उन्होंने कहा कि प्रोस्टेट कैंसर से बचाव के लिए प्रति वर्ष पीएसए जांच करवाना चाहिए ताकि रोग होने पर उसका आरंभिक अवस्था में ही तत्काल इलाज किया जा सके।

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