गांधी के सपनों का भारत बनाने अभी और प्रयास करने होंगे : डॉ द्विवेदी
राष्ट्रीय धरोहर निधि के दुर्ग-भिलाई चैप्टर में गांधी की प्रासंगिकता पर परिचर्चा
भिलाई। महात्मा गांधी के सपनों का भारत बनाने के लिए अभी और प्रयास करने होंगे। गांधी ने 1936 में कहा था, ‘जब तक एक भी कुष्ठ रोगी सेवा से वंचित रहेगा, तब तक भारत पूरी तरह आजाद नहीं हो सकता।’ उक्त बातें राष्ट्रीय धरोहर निधि के दुर्ग-भिलाई चैप्टर द्वारा आयोजित परिचर्चा ‘गांधी की प्रासंगिकता’ की अध्यक्षता करते हुए वयोवृद्ध गांधीवादी एवं कुष्ठ उन्मूलन कार्यकर्ता डॉ एमएस द्विवेदी ने कही।
इस परिचर्चा का आयोजन पं सुन्दरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय कार्यालय में किया गया था। 87 वर्षीय डॉ द्विवेदी ने कुष्ठ उन्मूलन के क्षेत्र में कार्य करते हुए अपना पूरा जीवन बिता दिया। उन्होंने कहा, गांधी न केवल आज प्रासंगिक हैं बल्कि हर युग में प्रासंगिक बने रहेंगे।
छत्तीसढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मलेन के महासचिव रवि श्रीवास्तव ने गांधी की सादगी को अपनाने का आग्रह करते हुए कहा कि गांधी ने सच्चाई के साथ जीवन जीने आदर्श प्रस्तुत किया। वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ हरिनारायण दुबे ने कहा कि गांधी के किसी भी एक विचार सूत्र को जीवन में उतार कर जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है। श्री स्वरूपानंद महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ हंसा शुक्ला ने गांधी की प्रसिद्ध उक्ति को उद्धृत करते हुए कहा कि आप समाज में जो परिवर्तन देखना चाहते हैं, उसे अपने आचरण में ढाल लें। समाज खुद ब खुद बदल जाएगा।
प्रसिद्ध व्यंगकार विनोद साव ने कहा कि भारतीय जनमानस पर गांधी इस कदर छाये रहे हैं कि भारत को राम, कृष्ण और गांधी का देश कहा जाने लगा। गांधी की सादगी इतनी कठिन थी कि अब तक कोई दूसरा उसे पूरी तरह अपने आचरण में नहीं उतार सका। उन्होंने कहा कि जैसे राम या कृष्ण फिर नहीं आएंगे, ठीक उसी तरह गांधी भी अब कभी नहीं आएंगे।
कुष्ठ उन्मूलन में प्रदेश में उल्लेखनीय सहभागिता देने वाले डॉ बी पी मुखर्जी ने कहा कि गांधी ने कुष्ठ रोगियों की स्वयं सेवा कर उन्हें उपेक्षा व पीड़ा से उबार कर सम्मान व गरिमा प्रदान की।
बेमेतरा शासकीय महाविद्यालय के प्राध्यापक प्रो विकास पंचाक्षरी ने वर्तमान में गाँधी व उनके दर्शन पर हो रहे आक्रमण पर दु:ख व्यक्त करते हुए कहा कि नई पीढ़ी को उपयुक्त संपे्रषण माध्यमों से गाँधी को समझाना होगा। फिल्म जगत से जुड़े रविन्द्र खंडेलवाल ने कहा कि गाँधी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 23 देशों में उनके जीवन पर 27 डाकूमेंन्ट्री फिल्में बनीं। ई-पत्रिका ‘सन्डे केम्पस’ के संपादक दीपक रंजन दास ने सामाजिक परिवर्तन में जुटे आस-पास के गांधियों का जिक्र करते हुए कहा कि अब लड़ाई आजादी की नहीं बल्कि देश को मजबूत बनाने की है। सभी को अपने अपने कार्यक्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन लाना होगा।
चतुर्भुज फाउन्डेशन के अध्यक्ष अरुण श्रीवास्तव ने कहा कि जीवन के हर क्षेत्र में गांधी आज भी प्रासंगिक ही नहीं बल्कि आवश्यक हैं। जय प्रकाश नारायण संस्थान के आरपी शर्मा ने गांधी के दर्शन को व्यापक विस्तार देने की आवश्यकता बतलाई। सामाजिक कार्यकर्ता शालू मेनन ने स्वच्छता अभियान को गाँधी के सपने के अनुकूल बतलाते हुए शासन के ऐसे प्रयासों की सराहना की। सामाजिक कार्यकर्त्ता बी पोलम्मा ने कहा कि उपेक्षितों व शोषितों की सेवा करना ही वास्तव में गांधी के प्रति सम्मान होगा। धमधा के शिक्षक जगमोहन सिन्हा ने गांधी के तालीम के मॉडल को अपनाने की सलाह दी। इन्टेक की सह-संयोजक विद्या गुप्ता ने कहा कि पारिवारिक विरोध के बाबजूद गांधी ने अपने जीवन की कठिन शैली को नहीं छोड़ा और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे।
परिचर्चा का संचालन करते हुए इन्टेक के संयोजक डॉ डी एन शर्मा ने बतलाया कि गत पांच वर्षों में गूगल पर 13 लाख बार गाँधी को सर्च किया गया व 6 लाख से अधिक बार विकिपीडिया पर गाँधी के पृष्ठ का अवलोकन किया गया जो विश्व के लोकप्रिय नेताओं में सर्वाधिक है। श्री शंकराचार्य महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ रक्षा सिंह ने आभार प्रदर्शन करते हुए गांधी के ग्राम स्वराज्य की अवधारणा को आज की जरुरत बतालय। इस अवसर पर हेमचंद यादव विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ एन पी दीक्षित, शिवनाथ बचाओ आन्दोलन से जुड़े संजय मिश्रा, प्रसिद्ध फोटोग्राफर कांति सोलंकी, सामाजिक कार्यकर्त्ता श्री मूर्ति, उमेश आंचला सहित विशेष रूप से उपस्थित रहे।