इतना हो रहा विकास तो भूख सूचकांक पर देश 103 नम्बर पर कैसे : एनके सिंह

NK Singh flays populace for taking no interest in real issuesभिलाई। वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने आज कहा कि देश में वास्तविक मुद्दों पर गैरजरूरी विषय हावी हो गए हैं। कोई नहीं पूछता कि एमपीलैड फंड के पांच करोड़ से कौन से काम हुए? कोई नहीं पूछता कि इतना विकास हो रहा है तो ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर भारत का स्थान 103 पर क्यों है? भूख के सूचकांक पर पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देश भी हमसे आगे कैसे हैं? महाराष्ट्र में लोकतंत्र का मजाक बनाया गया पर देश इससे बेजार है। बेकार के मुद्दे चर्चा के केन्द्र में हैं और देश धीरे-धीरे सड़ रहा है जिसकी किसीको फिक्र नहीं है।Jan-Sarokar-Ashok-Mallik भिलाई। वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने आज कहा कि देश में वास्तविक मुद्दों पर गैरजरूरी विषय हावी हो गए हैं। कोई नहीं पूछता कि एमपीलैड फंड के पांच करोड़ से कौन से काम हुए? कोई नहीं पूछता कि इतना विकास हो रहा है तो ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर भारत का स्थान 103 पर क्यों है? भूख के सूचकांक पर पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देश भी हमसे आगे कैसे हैं? महाराष्ट्र में लोकतंत्र का मजाक बनाया गया पर देश इससे बेजार है। बेकार के मुद्दे चर्चा के केन्द्र में हैं और देश धीरे-धीरे सड़ रहा है जिसकी किसीको फिक्र नहीं है।श्री सिंह आज यहां जन सरोकार पर आयोजित विशेष व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे। देश में टीवी बहस का सूत्रपात करने वाले पत्रकार श्री सिंह ने कहा कि टीवी पर होने वाली बहसें गलत दिशा में चली गई हैं। लोगों को वास्तविक हालात की जानकारी नहीं हो पाती और न ही उनमें जानने की रुचि है। पूरा नॉलेज प्रोसेस गड़बड़ा गया है।
उन्होंने देश में कुपोषण के भयावह आंकड़ों का उल्लेख करते हुए कहा कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स (वैश्विक भूख सूचकांक) पर भारत 107 देशों में 102 पर पहुंच गया है। बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका का प्रदर्शन भी भारत से बेहतर है। भारत में बच्चों की स्थिति अच्छी नहीं है। दुनिया भर के 15 करोड़ ‘स्टंटेड’ (ठूंठ) बच्चों में से 31 फीसदी जहां भारत में है वहीं दुनिया भर के ‘वेस्टेड’ (हाइट के मुकाबले कम वजन) बच्चों में से आधे भारत में हैं। जन्म के समय कम वजन के बच्चों की भी अच्छी खासी संख्या है। ऐसे बच्चे शारीरिक और मानसिक तौर पर कमजोर रह जाते हैं जिसके कारण देश की उत्पादकता घटती जाती है। देश में आज भी शिशु मृत्यु दर (जन्म से 5 वर्ष के बीच मृत्यु) काफी ऊंची है।
किसानों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा किभारत में प्रतिदिन 29 किसान आत्महत्या कर लेते हैं। 2252 किसान कृषि कार्यों से तौबा कर लेते हैं। औसत किसान अब भी अपने खेतों से सालाना 70 हजार रुपए ही कमा पाता है। इसमें किसान के स्वयं का एवं उसके परिवार का श्रम लगा होता है। देश में सभी प्रकार की कृषि की लागत इतनी अधिक है कि हम वैश्विक प्रतिस्पर्धा का मुकाबला नहीं कर सकते। यही कारण था कि भारत ने आरसीईपी (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी) पर हस्ताक्षर नहीं किये। श्री सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री कृषि बीमा योजना को राज्यों ने फेल कर दिया। यह किसानों के लिए एक बड़ी राहत हो सकती थी।
भिलाई। वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने आज कहा कि देश में वास्तविक मुद्दों पर गैरजरूरी विषय हावी हो गए हैं। कोई नहीं पूछता कि एमपीलैड फंड के पांच करोड़ से कौन से काम हुए? कोई नहीं पूछता कि इतना विकास हो रहा है तो ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर भारत का स्थान 103 पर क्यों है? भूख के सूचकांक पर पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देश भी हमसे आगे कैसे हैं? महाराष्ट्र में लोकतंत्र का मजाक बनाया गया पर देश इससे बेजार है। बेकार के मुद्दे चर्चा के केन्द्र में हैं और देश धीरे-धीरे सड़ रहा है जिसकी किसीको फिक्र नहीं है।सिंह ने कहा कि देश में सिर्फ जीडीपी की बातें होती हैं। ह्यूमन ग्रोथ इंडेक्स (मानव विकास सूचकांक) की बातें नहीं होतीं। जीडीपी 2024 तक बढ़कर 5 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा पर मानव विकास सूचकांक में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा है।
उन्होंने कहा कि देश में लोगों की ज्ञान प्रक्रिया बाधित हो गई है। लोग कुछ जानना भी नहीं चाहते। इसलिए वे सही फैसला नहीं कर पाते। नेताओं को तो चार दिन में ठीक किया जा सकता है पर जनता खुद तो पहले मुद्दों को पहचान ले।
नेशनल यूनियन आॅफ जनर्लिस्ट्स (इंडिया) एवं छत्तीसगढ़ आजतक पत्रिका द्वारा आयोजित कार्यशाला को जनसत्ता के पत्रकार अमलेश राजू, डेल्ही यूनियन आॅफ जर्नलिस्ट्स के अध्यक्ष मनोहर, एनयूजे (आई) के अध्यक्ष अशोक मलिक ने भी संबोधित किया। संचालन जन सरोकार मंच के संयोजक सादात अनवर ने किया। छत्तीसगढ़ आजतक के सम्पादक लखन वर्मा सहित देश भर के पत्रकार, समाज सेवी, विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि बड़ी संख्या में मौजूद थे।

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