Resignation of Gulam Nabi Azad

गुलाम ने अध्यक्ष को लिखा पांच पन्नों का इस्तीफा

पांच पन्नों का इस्तीफा कौन लिखता है? अगर अब वाकई पार्टी से मन भर गया है तो दो टूक कह दो कि बस! अब बहुत हो गया. मैं जा रहा हूं. मैं पद और प्राथमिक सदस्यता, दोनों से इस्तीफा दे रहा हूं. यह कोई नौकरी तो है नहीं कि एक महीने की नोटिस देनी पड़ेगी अन्यथा एक महीने की पगार काट ली जाएगी. कुछ कंपनियों में यह भी शर्त होती है कि इस्तीफा देने के तत्काल बाद आप प्रतिद्वंद्वी कंपनी से नहीं जुड़ सकते. पर इसकी भी कोई परवाह नहीं करता. पांच पन्नों में तो सुसाइड नोट लिखा जाता है. इसमें जमकर भड़ास निकाली जाती है और यह उम्मीद उसके हर वाक्य में छुपी दिखाई देती है कि अभी भी वक्त है, मुझे मना लो, वरना में वन-टू-थ्री गिनकर पांचवी मंजिल से छलांग लगा दूंगा. रूठने-मनाने का यह खेल तब समझ में आता है जब खिलाड़ी अपने ‘पीक फॉर्म’ में हो और अच्छा प्रदर्शन कर रहा हो. यदि वह पहले ही रिटायर होने की स्थिति में पहुंच चुका है तो लोग केवल शोक सभा मनाकर यह वियोग सहन कर लेते हैं. 73 साल के गुलाम नबी आजाद ने जब कांग्रेस से इस्तीफा दिया तो लोगों ने उसे बहुत ज्यादा सीरियसली नहीं लिया. गुलाम जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे हैं. 2022 में उन्हें पद्मभूषण अलंकरण से सम्मानित किया गया. क्या भाजपा डोरे डाल रही है? 1973 से राजनीति में सक्रिय गुलाम नबी सातवीं और आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए थे. इसके बाद से पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में बनाए रखा. 2005 में राज्यसभा से इस्तीफा देकर वे जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बने. जम्मू कश्मीर की युति सरकार से जब पीडीपी ने अपना समर्थन वापस ले लिया तो उन्होंने सरकार बचाने की कोई कोशिश नहीं की और चुपचाप इस्तीफा दे दिया. राज्यसभा का सुरक्षित ठिकाना तो था ही. ज्यादा लाड़-प्यार बच्चे को बिगाड़ देता है. वह अपने मां-बाप को मुंह पर कह सकता है कि आपने मेरे लिये किया ही क्या है. गुलाम नबी ने भी ऐन यही किया. उन्होंने कहा कि अपरिपक्व कांग्रेस हाईकमान चाटुकारों की महफिल सजाए बैठी है. उन्होंने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बारे में वह सबकुछ कह दिया तो बहुतों के दिल में तो है पर जुबान पर नहीं आ पाती. छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री ‘बाबा’ ने इसे गलत बताया. उन्होंने कहा कि गुलाम को अपनी बात पार्टी फोरम में रखनी चाहिए थी. यह बात और है कि थोड़े ही दिन पहले उन्होंने खुद भी ऐन ऐसा ही किया था. वैसे भी हमारे यहां जज, फौजी और आईएएस-आईपीएस रिटायर होने के बाद सरकार की पोल पट्टी खोलते रहे हैं. लोगों को इसमें बड़ा आनंद आता है. कोई तो उनके दिल की बात कहता है.

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