CG BJP resorts to Vikram Betal Tactics

छत्तीसगढ़ में भाजपा अब विक्रम बेताल की शरण में

छत्तीसगढ़ में भाजपा की गाड़ी को फिर से पटरी चढ़ाने की जवाबदारी जिन्हें सौंपी गई है उनपर कितना दबाव है इसका अंदाजा उनकी बौखलाहट से ही लग जाता है. पार्टी की प्रदेश प्रभारी डी पुरन्देश्वरी ने ताजा बयान दिया है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को श्राप है कि अगर उन्होंने सच बोला तो उनका सिर 1000 टुकड़ों में बंट जाएगा. जिन लोगों ने विक्रम बेताल की दंतकथाएं पढ़ी या सुनी हैं उन्हें पता है कि बेताल श्मशान में एक वृक्ष पर उल्टा लटका रहता है. उज्जैन के राजा विक्रमादित्य एक योगी के आदेश का पालन करने के लिए बार-बार श्मशान जाते हैं. वे बेताल को वृक्ष से उतारकर उसे योगी के पास ले जाने के लिए रवाना होते हैं. उनकी थकान मिटाने के लिए बेताल एक कहानी सुनाता है और अंत में एक सवाल पूछता है. वह कहता है कि यदि विक्रमादित्य का जवाब गलत हुआ तो उसका सिर टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा. यदि जवाब सही हुआ तो बेताल वापस पेड़ पर जा लटकेगा. अब जबकि विक्रम बेताल की कहानियों के दिन लद चुके हैं, भाजपा के नेता भी उसका मर्म भूल चुके हैं. उन्हें कहानी भी ठीक-ठीक याद नहीं. पर सोशल मीडिया को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बोलने वाले की जानकारी कितनी पुष्ट है. सोशल मीडिया तो शगूफों और अफवाहों की बिना पर ही चलता है. इसलिए पुरन्देश्वरी ने सच बोलने पर सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जाने की बात कह दी, या यूं कहें कि उनके मुंह से निकल गया. गलती यह हो गई कि इतनी ओछी बात उन्होंने तब कही जब पूरा प्रदेश मुख्यमंत्री का जन्मदिन मना रहा था और उन्हें बेहतर स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना कर रहा था. यह भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विरुद्ध तो है ही, यह ओछेपन की पराकाष्ठा है. दरअसल सोशल मीडिया को टार्गेट करके कही गई इन बातों का भाजपा की रीति-नीति से गहरा संबंध है. अन्यथा पार्टी आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए 14 अगस्त को विभाजन की त्रासदी को याद करने के लिए नहीं कहती. वह हमारा एक काला अतीत है जिसे भूलकर देश आगे बढ़ चुका है. महाभारत काल को ही ले लें तो कर्ण और कृष्ण एक ही समय में, एक जैसी परिस्थितियों में पैदा हुए. कृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ. जीवन रक्षा के लिए उन्हें बचपन में ही मां से अलग होना पड़ा और वे गोकुल में पले बढ़े. वहीं सूर्यपुत्र कर्ण को लोकलाज के डर से उनकी माता ने अपने से अलग कर दिया. उनकी परवरिश भीष्म के सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा के यहां हुई. दोनों ही अपनी-अपनी विद्या में श्रेष्ठ थे. पर श्रीकृष्ण ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और देवत्व को प्राप्त हुए. वहीं कर्ण हमेशा अपने अतीत की आंच में झुलसता रहा और अंततः अधर्म का साथ देते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ. अब भाजपा अपने काले अतीत को क्यों याद करना चाहती है, यह तो वही जाने…

Display Pic Courtesy LuckMoneyMyth.com

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