Two patients with Hypospadias treated in Aarogyam

आरोग्यम सुपरस्पेशालिटी में हाइपोस्पेडियस से पीड़ित दो बच्चों की सर्जरी

भिलाई। आरोग्यम सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल में हाइपोस्पेडियस से पीड़ित दो बच्चों की सफल सर्जरी कर दी गई. इनमें से एक की उम्र तीन साल तथा दूसरे की छह साल है. यह एक जन्मजात स्थिति है जिसमें शिशु का मूत्र मार्ग पूरी तरह से विकसित नहीं होता. मूत्र शिश्न के अग्रभाग से नहीं निकलकर शिश्न के नीचे से निकलता है. यह बच्चे को हीन भावना से ग्रस्त कर सकती है. आगे चलकर यह प्रजनन में बाधा उत्पन्न कर सकता है. इसलिए इसकी जितनी जल्दी हो सके सर्जरी करा लेनी चाहिए.
यूरोलॉजिस्ट डॉ नवीन राम दारूका ने बताया कि हाइपोस्पेडियस के देश भर में प्रतिवर्ष लगभग 80 हजार मामले सामने आते हैं. अच्छे नर्सिंग होम या अस्पताल में शिशु के जन्म के बाद ही इसका पता लग जाता है. गांव देहात में मामला काफी समय तक छिपा रह सकता है विशेषकर तब जब पेशाब जाने का रास्ता शिश्न के आगे की तरफ हो. मामला तब भी छिपा रह जाता है जब शिशु को बहुत कम उम्र से डायपर पहनाना शुरू कर दिया जाता है. लोग केवल गीली नैपी बदलते हैं, मूत्र की धार की तरफ उनका ध्यान नहीं जाता.
इन शिशुओं में मूत्र मार्ग पूरा नहीं बना होता. वह बीच रास्ते में ही कहीं खुल जाता है और मूत्र वहीं से विसर्जित होता है. जब मूत्र शिश्न के नीचे से विसर्जित होता है तो उसे हाइपोस्पेडियस कहते हैं. कभी-कभी मूत्र ऊपर से भी विसर्जित होता है जिसे एपिस्पेडियस कहते हैं. ऐसे बच्चों की सर्जरी दो साल की उम्र से पहले कर देनी चाहिए.
आरोग्यम में दाखिल बच्चों के बारे में उन्होंने बताया कि इनमें से एक बालक मोहगांव, राजनांदगांव का है. उसकी उम्र तीन साल है. दूसरा बालक परसबोड़, दुर्ग का है जिसकी उम्र 6 साल है. दोनों बच्चों की डीग्लविंग की गई तथा हाइपोस्पेडियस की मरम्मत कर दी गई. दोनों ही बालक अब सामान्य ढंग से मूत्र विसर्जित कर पा रहे हैं.

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