Bilaspur boasts of the second largest Chhathghat in India

बिलासपुर के इस घाट पर 50 हजार से अधिक लोग देते हैं सूर्य को अर्घ्य

छठ महापर्व पर छठीमाता के प्रति श्रद्धा और भक्ति देखते ही बनती है. संस्कारधानी बिलासपुर आस्था का महासंगम है. यहां का तोरवा छठघाट पूरे देश में प्रसिद्ध है. यहां प्रतिवर्ष 50 हजार से अधिक श्रद्धालु उदीयमान और अस्ताचल सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं. अरपा नदी के इस घाट पर चार दिनों तक मेले जैसा माहौल होता है. तोरवा छठघाट को देश का दूसरा सबसे बड़ा छठघाट माना जाता है.
सूर्यषष्ठी पर्व पर संस्कारधानी पारंपरिक छठगीतों से गूंज उठती है. बिहार, झारखंड व उत्तर प्रदेश की तर्ज पर ही यह पर्व यहां भी मनाया जाता है.
इस साल भी 30 अक्टूबर को अस्ताचल व 31 उदीयमान सर्य को अर्घ्य देने बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचेंगे. तोरवा छठघाट में स्थाई रूप से विद्युत, पार्किंग स्थल, सामुदायिक भवन, गार्डन के साथ पुलिस चौकी व अन्य सुविधाएं उपलब्ध हैं.
आयोजन से जुड़े पाटलिपुत्र सांस्कृति विकास मंच के अनुसार तोरवा का छठघाट देश में प्रसिद्ध है. घाट से लगा हुआ आठ एकड़ का मैदान है. यह श्रद्धालुओं के लिए पूरी तरह सुव्यवस्थित है. सबसे बड़ा मुंबई के जुहू चौपाटी घाट का विस्तार असीमित है. इसके बाद पाटलीपुत्र, बंका घाट पटना एवं हाजीपुर तथा अखाड़ा घाट, मुजफ्फरपुर महज 100 से 200 मीटर के दायरे में बना हुआ है.
प्रतिवर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाले इस पर्व में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक तड़के घाट पर नजर आते हैं. परंपरा के अनुसार महिलाएं घाट पर सोलह श्रृंगार कर पहुंचती है. पुरुष सिर पर दउरा लिए रहते हैं. पारंपरिक छठगीतों की गूंज और बजता हुआ ढोल-नगाड़ा, माहौल को खुशनुमा बना देता है. व्रतियों के साथ पूरा शहर खड़ा हुआ नजर आता है. छठ व्रती लगातार 36 घंटे का निर्जला व्रत करते हैं. इसे सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है.

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