Liquor is not that bad afterall

इतनी भी बुरी नहीं है दारू, देती है होसला-प्रेरणा भी

“पी गया चूहा- सारी व्हिस्की ….. कड़क के बोली, कहां है बिल्ली। दुम दबाके बिल्ली भागी, चूहे की फूटी किस्मत जागी। खेल रिस्की था, व्हिस्की ने किया बेड़ा पार.” फिल्म “शराबी” का यह गीत तो आपको याद ही होगा. शराब केवल नशा करने के लिए नहीं पी जाती, कभी-कभी यह हौसला देने का भी काम करती है. भिलाई में एक श्रमिक नेता हुए हैं. नगर प्रशासन भवन में हल्ला बोलने के लिए वो पेग लगाकर जाते थे. जैसे ही इसकी खबर लगती, अधिकारी थर-थर कांपने लगते. चुटकियों में काम हो जाता. बॉलीवुड में तो इसकी खास जरूरत पड़ती रही है. दिन भर में तीन अलग-अलग हीरो/हिरोइनों के साथ कूट-कूट कर प्यार करने के लिए मूड बनाना हो तो शराब बहुत काम आती है. यह और बात है कि कुछ लोग इसमें डूब कर बर्बाद हो जाते हैं तो कुछ लोग तैर कर किनारे भी लग जाते हैं. अपराध जगत में भी इसकी अच्छी खासी डिमांड है. कहा जाता है कि किसी की पिटाई करनी हो तो चार यार इकट्ठा करो, सबको फटे तक पिलाओ और फिर खुली गाड़ी में बैठकर निकल पड़ो. वैसे शराब दोस्ती को भी हवा देती है. दो पेग लगाने के बाद लोग एक दूसरे के भाई बन जाते हैं. कोई कहता है आज पैसा भाई देगा, तो कोई कहता है – आज गाड़ी भाई चलाएगा. वैसे शराब घर परिवार को बर्बाद करने, लिवर खराब करने के लिए ही ज्यादा मशहूर है. यही शराब अब छत्तीसगढ़ में सियासी माहौल को गर्म करने का काम कर रही है. पारा तेजी से नीचे आ रहा है और शराब का मुद्दा सिर चढ़ कर बोल रहा है. विपक्षी भाजपा का महिला विंग इसमें खासा सक्रिय है. ये महिलाएं पेग लगाने का वीडियो बना रही हैं. कोई बोतल तो कोई चखना लेकर पहुंच रहा है. महिलाओं का इरादा कांग्रेस के नेताओं-विधायकों को बोतल की माला पहनाने का भी है. मनेन्द्रगढ़ में जब महिलाएं सार्वजनिक रूप से पालथी मारकर पेग बनाने बैठीं तो हुजूम इकट्ठा हो गया. महिलाओं ने कहा कि सरकार शराब बंदी का वायदा भूल गई. भरतपुर के ढाबों तक में शराब की गंगा बह रही है. इसलिए अंग्रेजी शराब और चखने के साथ प्रदर्शन किया जा रहा है. इधर कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि शराब बंदी को नोटबंदी की तर्ज पर अचानक बंद नहीं किया जाएगा. नोटबंदी की तरह विभिन्न राज्यों में शराब बंदी भी बेअसर रही है. बेवड़ों की संख्या कम नहीं होती. घाटा सरकार को होता है और तस्कर चांदी काटते हैं. इसलिए शराबबंदी का फैसला पंचायत स्तर पर होगा. लोग खुद शराब छोड़ें, इसके लिए माहौल बनाया जा रहा है. इसमें महिला स्वयं सहायता समूहों का रचनात्मक सहयोग मिल रहा है. अब लौटते हैं “शराबी” के इसी गाने की अंतिम लाइन पर. “फिर दोनों ऐसे मिले, प्यार में ही डूब गए, प्यार अगर मिले तो, हर नशा है बेकार.. जहां चार यार!” थोड़ा इंतजार करो, दृश्य जरूर बदलेगा.

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