SP Lal Umed shows the path

गुस्ताखी माफ : पुलिस अधीक्षक ने पेश की समाज सेवा की मिसाल

बलरामपुर रामानुजगंज के जिला पुलिस अधीक्षक डॉ लाल उमेद सिंह ने ऐसे लोगों को वापस औपचारिक शिक्षा से जोड़ दिया है जिन्होंने गरीबी और तंगहाली के कारण अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी. इनमें पूर्व नक्सली, पूर्व नक्सलियों की पत्नियां और बच्चे भी शामिल हैं. उन्होंने अपने पैसों से इन लोगों का दसवीं ओपन में दाखिला करवाया. उन्हें पुस्तकें, कापियां, गाइड, पेन पेंसिल, आदि खरीद कर दिया. जाहिर है, जिन्हें मदद मिली वे न केवल खुश हैं बल्कि उनमें नए सिरे से जीवन को जीने की उमंग पैदा हुई है. उनकी मदद कर यही खुशी डॉ सिंह को भी मिली होगी. इससे पहले भी बतौर कबीरधाम एसपी उन्होंने 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए फोर्स एकेडमी चाइल्ड विंग की शुरुआत की थी. इसमें प्रतिभावान, सुविधा विहीन योग्य बच्चों को खेल कूद के माध्यम से भाईचारा व अनुशासन की शिक्षा दी जाती है. डॉ लाल उमेद सिंह ने वही किया है जो समाज की जिम्मेदारी बनती है. लोग दान-दहेज, चढ़ावा और गिफ्ट पर हजारों रुपए फूंक देते हैं. यदि समर्थ परिवार एक-एक परिवार को गोद ले लें तो देश का बहुत भला हो सकता है. हाल ही में किसी ने कहा है कि भारत जब आजाद हुआ, तब से आज तक विकासशील देश ही बना हुआ है. उन्होंने एक सवाल पूछा कि भारत कब विकसित देश होगा. दरअसल, विकसित और विकासशील होना हमारे “माइंड-सेट” पर निर्भर करता है. हम तो इसी घमंड में चूर हैं कि हमारी सभ्यता और संस्कृति महान है. निश्चित तौर पर सनातन संस्कृति महान है पर उसके मानने वाले कितने हैं? अब तो दरिद्र नारायण भोग के लिए चंदा देने वाले भी अपने हिस्से का भोग पहले टिफिन में भर कर घर ले जाते हैं. भंडारों में भिखारी दुत्कारे जाते हैं और भरे पेट वाले पार्टी करते हैं. किसी भी पूजा पंडाल में चले जाएं, यह दृश्य दिखाई दे जाएगा. देश में अशिक्षा है तो शिक्षितों की भी भारी भरकम तादाद है. गरीब हैं तो दुनिया के सबसे ज्यादा अरबपति भी भारत में ही हैं. यदि शिक्षित लोग प्रतिदिन एक-दो घंटे का समय निकालकर साधन विहीन विद्यार्थियों को मुफ्त में पढ़ा दें तो सरकार को साक्षरता और प्रौढ़ शिक्षा अभियान नहीं चलाना पड़ेगा. यदि अपने आसपास की गंदी बस्तियों के लिए कुछ कर सकें तो हमारा परिवेश बेहतर हो सकता है. अल्पसंख्यक समुदाय अपनी आय का एक हिस्सा चर्च या मस्जिद को देते हैं. मौलवी-पादरी की सुनते हैं. दक्षिण भारतीय चर्चों में इसे दशमांशम् कहते हैं – आय का दसवां हिस्सा. इससे चर्च और मस्जिद का सामर्थ्य बढ़ता है. चर्च जहां स्कूल, कालेज, अस्पताल और वृद्धाश्रम चलाते हैं वहीं मस्जिद यतीम खानों, मदरसों का संचालन करते हैं. सनातन भी कहता है कि परोपकार की खुशी किसी भी संपत्ति को प्राप्त करने की खुशी से बड़ी होती है. यकीन न आता हो तो एक पायलट प्रोजेक्ट चलाकर देख लें.

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