DJ Dance over shadows Puja

पूजा आस्था गई भाड़ में, अब डीजे बिना सब सून

बिलासपुर के कोनी में युवकों ने एक आरक्षक की पिटाई कर उसकी वर्दी फाड़ दी. वहीं तिफरा के कुंदरापारा में कुछ युवकों पर चाकू से हमला कर दिया गया. दोनों ही मामले शोरशराबे से जुड़े हुए हैं. गली मोहल्लों में शोरशराबा के खिलाफ कोलाहल कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है. पर कोई कुछ करता नहीं. शासन मात्र एक आदेश जारी करता है जिसका कोई पालन नहीं करता. लोग बिंदास तथाकथित डीजे पर शोरशराबा करते हुए गली मोहल्लों से निकलते हैं. डीजे की धुन पर नाचने वालों के कारण ट्रैफिक जाम हो जाता है. डीजे के चक्कर में कहीं बाराती पिट रहे होते हैं तो कहीं कांवड़ियों में सिर फुटव्वल हो जाता है. पिछले कुछ दिनों से छत्तीसगढ़ में गणपति विसर्जन का महा-दौर चल रहा है. गणपति स्थापना को लेकर लोगों में जितना उत्साह होता है, उससे भी कहीं ज्यादा उत्साह गणपति विसर्जन को लेकर होता है. लोग सड़कों पर विसर्जन वाहन को जहां तहां खड़ा कर डीजे की धुन पर नाचने लगते हैं. चौक चौराहों पर तो जैसे मजमा ही लगा लेते हैं. काश! सार्वजनिक गणेशोत्सव की नींव रखने वाले बाल गंगाधर तिलक को इसकी जरा सी भी भनक होती तो वे यह गलती कदापि नहीं करते. सन् 1893 में जब उन्होंने केशवजी नाइक चॉल, मुम्बई में सार्वजनिक गणेश पूजा की शुरुआत की तो उन्होंने सोचा था कि गणेशोत्सव के बहाने लोग इकट्ठा होंगे. उनमें समूह बोध विकसित होगा. उनका आत्मसम्मान जगाया जा सकेगा और उन्हें राष्ट्र की सेवा के लिए प्रेरित किया जा सकेगा. पर हो ठीक उलटा रहा है. सार्वजनिक धार्मिक आयोजन केवल सिरदर्द बन कर रह गए हैं. एक-एक मोहल्ले में चार-चार पूजा पंडाल सज रहे हैं. लोगों में एकता की भावना विकसित होने की बजाय उनमें खींचतान बढ़ रही है. बिजली के टेम्पररी कनेक्शन के कारण मोहल्ले की बिजली बाधित हो रही है, सड़क बाधा के कारण भी परेशानी हो रही है, रात-रात भर चलने वाले लाउडस्पीकर पर जगराता के कारण लोगों की नींदें खराब हो रही हैं. मना करने वालों के साथ क्या हो रहा है, इसका विवरण पहले ही दिया जा चुका है. भक्ति के साथ डीजे का यह संबंध सिवा आयोजकों के किसी के पल्ले नहीं पड़ता. बावजूद इसके सरकार डरी हुई रहती है कि कहीं मना किया तो लोगों की धार्मिक भावना को ठेस न पहुंच जाए. क्या धर्म और आस्था अब डीजे पर निर्भर हो गया है? लगता तो नहीं है. दरअसल, युवाओं को सकेलने के लिए डीजे सबसे सस्ता माध्यम है. भीड़ में अपनी नृत्यकला का प्रदर्शन करने वालों की एक बहुत बड़ी जमात है. पूजा पंडालों में अब दिन भर प्रतिमाएं अकेली ही पड़ी रहती हैं. भीड़ केवल तभी जुटती है जब या तो खिचड़ी बंट रही होती है या फिर डीजे बज रहा होता है. उच्च शिक्षा संस्थानों में भी यही आलम है. पूजा आस्था गई भाड़ में, अब डीजे बिना सब सून.

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