श्री शंकराचार्य महाविद्यालय में हरेली पर गाए सावन के गीत
भिलाई। छत्तीसगढ़ की संस्कृति में त्यौहारों, पर्वाे का विशेष महत्व है. इसकी शुरुआत हरेली से होती है. श्री शंकराचार्य महाविद्यालय अपनी कला एवं परंपरा को भी संजोये रखने का प्रयास करता है. इस अवसर पर महाविद्यालय में ग्रामीण परंपरा के अनुरूप नारियल दौड़ का आयोजन किया गया एवं सावन के गीत भी गाए गए. इसके अलावा महाविद्यालय के प्राध्यापकों को अपनी-अपनी रचनात्मकता दिखाने का भी अवसर मिला.
हरेली त्योहार की जड़ें छत्तीसगढ़ की समृद्ध कृषि विरासत में हैं, जहाँ इसे लंबे समय से कृषि देवताओं के प्रति सम्मान के रूप में मनाया जाता रहा है. हरेली त्यौहार को श्रावण मास के कृष्ण पक्ष अमावस्या में मनाया जाता है. हरेली त्यौहार किसान और सभी छत्तीसगढ़वासियों का त्यौहार है. हरेली मतलब प्रकृति के चारों तरफ हरियाली से है. किसान खेत में जुताई-बोआई, रोपाई, बियासी के कार्य पूर्ण करके इस त्यौहार को मनाता है. मानसून की शुरुआत में मनाया जाने वाला हरेली, बुवाई के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है और लोगों और उनकी ज़मीन के बीच गहरे बंधन को दर्शाता है पीढ़ियों से चला आ रहा यह त्यौहार पारंपरिक रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों को कायम रखता है और इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान की एक महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति है.
कार्यक्रम का समापन वृक्षारोपण के साथ किया गया जिसमें महाविद्यालय के परिसर में प्राध्यापको द्वारा वृक्षारोपण करते हुए पर्यावरण की प्रति जागरूक रहने का संकल्प लिया गया. इस अवसर पर महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ अर्चना झा ने प्रकृति पर्व को अपनी रग रग में बसने तथा कार्यान्वित करने का आह्वान किया. महाविद्यालय के डीन अकादमिक डॉ जे दुर्गा प्रसाद राव ने छत्तीसगढ के प्रथम पर्व पर महाविद्यालय परिवार को शुभकामनाएं प्रेषित की और कहां वर्षा ऋतु में जिस प्रकार प्रकृति में सर्वत्र खुशियां बिखर जाती हैं इस प्रकार हमारे जीवन में भी सदैव खुशियां बिखरी रहे. इस सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन श्री शंकराचार्य महाविद्यालय के डॉ. कविता कुशवाहा श्रीमती पूनम यादव, हर्षा बैस, रचना तिवारी, वैष्णवी कंसारी एवं श्रीमती कांची लता के द्वारा किया गया.