गुस्ताखी माफ : प्रेम और सहचर्य की मिसाल बन गए ताऊ
हरियाणा के रेवाड़ी में एक गांव है पिथनवास. इस गांव में एक 90 वर्षीय वृद्धा की मृत्यु सुबह-सुबह हो गई. उनके जीवन साथी उस समय बाहर कुर्सी पर बैठे चाय पी रहे थे. थोड़ी देर बाद परिजनों को पता चलता है कि उन्होंने कुर्सी पर बैठे-बैठे ही खामोशी से अपने प्राण त्याग दिये थे. वे 93 वर्ष के थे. दंपति ने भरपूर जीवन दिया था. उन्होंने चार पीढ़ियां देख ली थीं. दोनों की अर्थी साथ-साथ चली. अर्थियों को गुब्बारों से सजाया गया और ढोल नगाड़े के साथ अंतिम यात्रा निकाली गई. इससे पहले यूपी के फतेहाबाद में भी एक ऐसी ही घटना देखने में आई थी. लिवर की समस्या से जूझ रही 48 वर्षीय ममता की मृत्यु हो गई. जैसे ही उनकी मृत्यु का समाचार मिला उनके 53 वर्षीय पति राजकुमार ने भी प्राण त्याग दिये. क्या प्रेम इतना गहरा हो सकता है? क्या वाकई रूहानी रिश्ते होते हैं? दरअसल, यही सनातन का प्रेम है. यह सहचर्य से विकसित होता है. यह हर हाल में खुश रहना सिखा देता है. सुबह की चाय भी यदि साथ-साथ बैठकर पी ली तो जीवन धन्य लगता है. इसमें प्रेम का भद्दा प्रदर्शन नहीं होता. केवल आंखों में झांककर एक मुस्कान दे दी तो चुम्बन, आलिंगन सब हो जाता है. किसी प्रिवेसी की जरूरत नहीं होती. जुबान से कुछ कहने तक की जरूरत नहीं रहती. सिर्फ ये प्रेम ही उनका अपना होता है अन्यथा वो अपना कमाया सबकुछ अपनी अगली पीढ़ी को निःस्वार्थ-निःसंकोच सौंप देते हैं. उन्हें भविष्य की अनिश्चितता नहीं डराती. साथ-साथ कहीं भी घूम आए तो देश-विदेश की यात्रा हो जाती है. ट्रेन की जनरल बोगी में साथ-साथ बैठने मिल जाए तो वह हवाईजहाज की एक्जीक्यूटिव यात्रा से ज्यादा आरामदेह हो जाती है. पोटली से निकली रोटी सब्जी ही उनके लिए फाइव स्टार रेस्तरां का भोजन हो जाता है. उनके सपने, उनकी दुनिया एक दूसरे में सिमटी होती है. यहीं से उभरता है संतुष्टि का वह भाव जिसे खरीदा नहीं जा सकता. यह भाव न केवल एक दूसरे के प्रति समर्पण पैदा करता है बल्कि एक के जाते ही दूसरे की दुनिया खुद-ब-खुद खत्म हो जाती है. हम बात तो करते हैं भारतीय ज्ञान पद्धति की पर इसे स्कूल कालेज में सिखाया नहीं जा सकता. इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जब रिश्ते नफा-नुकसान को देखकर जोड़े जाते हैं तो भारतीय ज्ञान परम्परा खुद ब खुद खूंटी पर टंग जाती है. जीवन यापन तो एक बहाना मात्र है, उसे ऊपर उठाने के लिए लोग अपना जमीर तक गिरवी रख देते हैं. घर के तीन कमरे और कार की चार सीटें अतिथियों और रिश्तेदारों की संख्या तय कर देते हैं. पर्यटन पैकेज में होता है जिसमें साथी ट्रैवल एजेंट तय कर देता है. रिश्तों की वह बेबाकी, वह अल्हड़पन इसमें कहां है. इसीलिए स्वार्थ से जुड़े इन रिश्तों के बीच ताऊजी एक मिसाल बनकर उभरते हैं.