Pahadi Korwa and Birhor are yet to receive decent livelihood

जिनके नाम पर पड़ा “कोरबा” का नाम, आज क्या है उनका हाल

कोरबा । छत्तीसगढ़ की विशेष पिछड़ी जनजातियों (Chhattisgarh special backward tribe ) में शामिल पहाड़ी कोरवा और बिरहोर जनजाति (pahadi Korwa and Birhor tribes in Korba) का जीवन आज भी बदहाल  है। सरकार ने शिक्षित आदिवासियों को बिना किसी परीक्षा या औपचारिकता के नौकरी देने की पेशकश की है। कोरबा जिले में 21 आदिवासियों को नियुक्ति पत्र भी मिला है. लेकिन इसके बाद भी आदिवासियों का जीवन मुश्किलों से घिरा है। ‘बिर-होर’ का शाब्दिक अर्थ है जंगल-आदमी। कोरवा और बिरहोर आदिवासी अब भी जंगलों में ही निवास करते हैं। राशन के लिए 12 किलोमीटर का पैदल सफर तय करना पड़ता है। पीने के साफ पानी के लिए भी नाले और पहाड़ी रास्तों को पार करना पड़ता है। अधिकारी भले ही आदिवासियों का जीवन सुधारने की बात कह रही हो लेकिन जमीनी हकीकत इससे जुदा  है।

मयारु माटी mayaru mati : पहाड़ी कोरवा गांव में...

कोरबा जिले में 412 ग्राम पंचायतें हैं। जिनमें से 60 बसाहटें हैं। जहां विशेष पिछड़ी जनजाति में शामिल पहाड़ी कोरवा और बिरहोर निवास करते हैं। आदिवासी विभाग के सर्वे के अनुसार कोरबा जिले में इनकी कुल संख्या 4 हजार 934 है। हाल ही में जब इन्हें बिना किसी परीक्षा के नौकरी दिए जाने की घोषणा सरकार ने की तब नौकरी के लिए 322 लोगों को पात्र पाया गया। खासतौर पर पहाड़ी कोरवा की संख्या कोरबा जिले में अधिक है। ऐसा माना जाता है कि कोरवाओं के नाम पर ही कोरबा जिले को इसका नाम मिला है।

राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र जल जंगल जमीन के मोहताज हैं। अधिकारी एसी दफ्तर में बैठकर योजनाएं बनाते हैं। लेकिन इसका लाभ विशेष पिछड़ी जनजातियों को नहीं मिल पाता है। आदिवासियों के नाम पर करोड़ों रुपए का बंदरबांट कर लिया जाता है। आज भी विशेष पिछड़ी जनजाति के आदिवासी केवल जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

गांव जामपानी के पहाड़ी कोरवा मोहन कहते हैं कि ” वन अधिकार पट्टा तो मिला है. लगभग 5 एकड़ खेत भी है। लेकिन यहां खेती किसानी करने के लिए खाद और बीज जैसी कोई सुविधा नहीं मिली है। छातीबहार के पहाड़ी कोरवा बंधन कहते हैं कि ”गांव में बोर की सुविधा नहीं है। नल से लाल पानी निकलता है। हम नाले के पानी को ही पीने के लिए इस्तेमाल करते हैं। नाले का पानी बरसात में गंदा हो जाता है। सरकारी राशन की दुकान से जो चावल और चना मिलता है उसी से पेट भरते हैं। लेकिन इसके लिए भी लगभग 12 किलोमीटर पैदल जाना पड़ता है।

कलेक्टर संजीव झा कहते हैं कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर पहाड़ी कोरवा और बिरहोरों को उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर बिना किसी परीक्षा के सरकारी नौकरी दी गई। पहले चरण में 21 लोगों को नियुक्ति पत्र दिया है। पशुपालन या बकरी पालन में हम उनकी मदद कर रहे हैं। उनकी आय सुनिश्चित करने के लिए भी अलग से योजना बनाई है।

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