Jhagda Natara is a prison for the unforunate girls of Rajgarh in Madhya Pradesh

नातरा-झगड़ा : बाप और पति के सामने पंचायत लगाती है बेटी की बोली

इन लड़कियों के जीवन में इधर कुआं है तो उधर खाई। आधी शादी तब हो जाती है जब उन्हें ठीक से नाक पोंछना भी नहीं आता। 2 साल की उम्र में ही उनका रिश्ता तय कर दिया जाता है। 18-19 साल की उम्र में दूसरी बार शादी होती है। तब लड़के वाले डिमांड रखते हैं। पूरा नहीं किया तो लड़की को प्रताड़ित करते हैं। यदि लड़की शादी से बाहर निकलना चाहे तो उसके घर वालों को मोटी रकम देनी पड़ती है। रकम का जुगाड़ न हो तो लड़की बोली लगाई जाती है। जिसके पास पैसा होता है वह उन्हें खरीद लेता है। वह कैसा निकलेगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

यह माजरा है मध्य प्रदेश के राजगढ़ ज़िले में रहने वाले पिछड़ा समुदायों में एक प्रथा सदियों से चली आ रही है। इसे “झगड़ा नातरा” कहा जाता है। बेटी का बाल विवाह 2-3 साल की उम्र में करा दिया जाता है। गौना या दूसरी शादी बाद में होती है। इस शादी के बंधन से बाहर निकलना है तो लड़के वालों को मुंहमांगी रकम देनी पड़ती है। मामला पंचायत में जाने पर वहां से रकम तय की जाती है। पैसे न हों तो लड़की बोली लगाई जाती है। लड़की के पिता और पति दोनों इस अवसर पर उपस्थित रहते हैं। यह प्रथा मध्य प्रदेश के राजगढ़ के अलावा, आगर मालवा, गुना समेत राजस्थान के झालावाड़ से लेकर चित्तौड़गढ़, ऐसे इलाके हैं जहां नातरा प्रथा का चलन अब भी जारी है। जानकार बताते हैं कि इन इलाक़ों में यह प्रथा 100 वर्षों से भी अधिक समय से चली आ रही है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफ़एचएस-5) के अनुसार राजगढ़ ज़िले में 52 फ़ीसदी महिलाएं अनपढ़ हैं और 20-24 आयु वर्ग की कुल लड़कियों में से 46 फ़ीसदी ऐसी हैं जिनकी शादी 18 साल से पहले की जा चुकी है यानी कि इनका बाल विवाह हो चुका है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, राजगढ़ की कुल आबादी 15.45 लाख है और यहाँ लगभग 7.55 लाख से अधिक महिलाएँ हैं।

सीमा सिंह राजगढ़ में 1989 से पीजी कॉलेज में समाजशास्त्र पढ़ाती हैं। वो कहती हैं कि ‘झगड़ा नातरा’ प्रथा का कोई लिखित इतिहास नहीं है लेकिन ये सदियों पुरानी प्रथा है और ये विधवा महिलाओं और ग़ैर शादीशुदा महिला और पुरुषों के साथ रहकर जीवन व्यतीत करने की परंपरा थी ताकि उन्हें भी सामाजिक तौर पर एक बेहतर जीवन का हक़ मिले। पहले इसका नाम नाता प्रथा था। इसके तहत विधवा महिलाओं को दोबारा सामाजिक जीवन में हिस्सेदारी का मौक़ा मिलता था। हालांकि समय के साथ इसका प्रारूप बदलता गया और आज ये एक तरह से महिलाओं की सौदेबाज़ी में बदल चुका है। बच्चियों की बचपन में ही शादी या सगाई कर दी जाती है और फिर आगे चलकर जब रिश्ते में दरार आती है तो लड़कियों से पैसे माँगे जाते हैं। पैसों की इसी माँग को “झगड़ा” माँगना कहते हैं।

पंचायतों के पास मामले तब पहुँचते हैं जब लड़की या तो इसका विरोध करती है या फिर लड़की पक्ष पैसा देने में असमर्थ होता है क्योंकि लड़का पक्ष हमेशा ही बहुत ज़्यादा पैसे माँगता है। पंचायत फ़ैसला करती है कि लड़की को उसकी आज़ादी के बदले लड़के को कितने पैसे देने पड़ेंगे।”

पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता भानु ठाकुर कहते हैं कि “इस प्रथा का प्रभाव स्थानीय लोगों के बीच इतना ज़्यादा है कि ये सगाई कोर्ट मैरिज से भी ज्यादा पक्की मानी जाती है। बीते तीन सालों में ‘झगड़ा नातरा’ प्रथा के 500 से अधिक मामले केवल राजगढ़ ज़िले में दर्ज किए गए हैं। पर ये केवल वो मामले हैं जो रिपोर्ट हुए हैं। वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा है।

राजगढ़ पुलिस अधीक्षक आदित्य मिश्रा बताते हैं कि “झगड़ा नातरा” के 500 मामले पिछले तीन सालों में दर्ज किये गये हैं। यह पूरी तरह से अवैध और असंवैधानिक प्रथा है जिससे आज भी यहाँ के लोग रीति रिवाजों के नाम पर महिलाओं को उनके हक़ों से वंचित रखने का प्रयास करते हैं। ये महिलाओं की आज़ादी को दबाने का प्रयास है और समाज के लोग इसे बिलकुल सही मानते हैं। इतने वर्षों बाद अब कम से कम पीड़ितों के मन में इसको लेकर इतनी हिम्मत जागी है कि वो आकर शिकायत करें और कानून की मदद लें।

राजगढ़ से 20 किलोमीटर दूर कोडक्या गांव में रहने वाली मांगीबाई की कहानी भी कौशल्या से मिलती-जुलती है। मांगीबाई

बताती हैं कि ससुराल में न खाना मिलता था और न ही सोने को बिस्तर। पति को शराब पीने से मना करने पर मार खानी पड़ती। सपने बड़े नहीं थे बस एक सुखी जीवन चाहती थी लेकिन वो भी नसीब नहीं हुआ। रिश्ता खत्म कराने पंचायत पहुंची तो वह भी मांगीबाई के खिलाफ ही गया। फिर उसने पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी।

सामाजिक कार्यकर्ता मोना सुस्तानी ‘लाल चूनर’ नाम से एक संस्था चला रही हैं, जो इस प्रथा से पीड़ित लड़कियों की मदद करती हैं। एक दशक से ज़्यादा समय से काम कर रहीं मोना का कहना है कि ये प्रथा महिला विरोधी है और पितृसत्तात्मक सोच को बढ़ावा देती है। 1989 में शादी करके जब इस गांव आई तो इस प्रथा को देखकर दंग रह गई। फिर इस प्रथा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का मन बना लिया। बीते 5 वर्षों में ही उनकी संस्था ने लगभग 237 लड़कियों को इस प्रथा से छुड़वाया है और इनमें से ज़्यादातर में लड़कियों को एक रुपये भी नहीं देने पड़े हैं।

(चित्र Collector Office Rajgarh के फेसबुक वॉल से (InputsBBC Hindi)

#MadhyaPradesh #BackwardCastes #JhagdaNatara #TribalCulture #ChildMarriage

 

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *