फैल रही ‘रहस्यमयी किडनी महामारी’, हर साल 2 लाख लोगों के गुर्दे फेल
नई दिल्ली। क्रोनिक किडनी डजीज (CKD) दुनिया के साथ-साथ भारतीय आबादी में भी एक संकट की तरह उभर रही है. पहले जहां ये बीमारी सिर्फ बुजुर्गों या अमीर तबके तक सीमित थी, वहीं अब ये बीमारी डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर जैसी लाइफस्टाइल डिजीज के कारण भी हो रही है. अगर स्थिति ऐसी ही बनी रही तो जल्द ही यह बीमारी महामारी के स्तर तक पहुंच सकती है.

दक्षिण भारत के किसानों में तेजी से एक रहस्यमयी किडनी की बीमारी फैल रही है जिसे क्रॉनिक किडनी डिजीज ऑफ अननोन ओरिजिन (CKDU) कहा जा रहा है. तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के कई इलाकों में युवा किसान किडनी फेल्योर के शिकार हो रहे हैं. कोई इसे गर्मी और डिहाइड्रेशन से जुड़ा बताता है तो कोई खाद और कीटनाशक से दूषित मिट्टी के संपर्क में आने को इसकी वजह मान रहा है. यह बीमारी संक्रामक नहीं है लेकिन काम करने के हालात और पर्यावरण से गहराई से जुड़ी हुई हो सकती है.’
नेफ्रोलॉजिस्ट्स का कहना है कि देश में हर साल करीब दो लाख लोग गंभीर किडनी फेल्योर की स्थिति में पहुंच जाते हैं जबकि इससे 10 गुना अधिक लोग किडनी बीमारी से जूझते हैं. इनमें से सिर्फ 25 प्रतिशत मरीजों को ही इलाज मिल पाता है. हालांकि नेफ्रोलॉजिस्ट और डायलिसिस सेंटर्स तक पहुंच बढ़ी है लेकिन अभी भी सुविधा अपर्याप्त है. किडनी डिजीज जब आखिरी स्टेज पर पहुंचता है तब डायलिसिस और ट्रांसप्लांट का विकल्प ही रह जाता है.
नेफ्रोलॉजिस्ट बताते हैं कि हालांकि भारत में डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा बढ़ी है लेकिन खर्च अब भी एक बड़ी समस्या है. 1990 के दशक में सिर्फ 5 प्रतिशत मरीजों के पास हेल्थ इंश्योरेंस होता था और वहीं आज 60 प्रतिशत से लोगों के पास हेल्थ इंश्योरेंस है. लेकिन लंबे समय तक डायलिसिस का खर्च अभी भी बहुत ज्यादा है. कई परिवार इसका खर्चा वहन नहीं कर पाते और वहीं रुक जाते हैं.’
यदि भारत को किडनी डिजीज के आने वाले जोखिम से बताना है तो रोकथाम पर ध्यान देना होगा. यदि हम न्यूट्रिशन और पब्लिक हेल्थ सिस्टम को मजबूत करें तो इन बीमारियों को पहले ही रोका जा सकता है.
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