Indian thali is half cereal againsprescribed 32%

भारतीय थाली में पोषण संकट, आधा से ज्यादा हिस्सा केवल अनाज का

नई दिल्ली। भारतीयों के खाने में प्रोटीन की मात्रा का लगभग आधा हिस्सा अब चावल, गेहूं, सूजी और मैदा जैसे अनाजों से आता है। यह हिस्सेदारी नेशनल इंस्टीट्यूट आफ न्यूट्रिशन (एनआइएन) की ओर से सुझाई गई 32 प्रतिशत की मात्रा से बहुत अधिक है। काउंसिल आन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ। अध्ययन में नेशनल सैंपल सर्वे आफिस के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2023 – 24 के आंकड़ों के आधार पर खानपान के रुझानों का विश्लेषण किया गया है।

इस अध्ययन में पाया गया है कि इस प्रोटीन का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा अनाजों से आता है, जिनमें कम गुणवत्ता वाला अमीनो एसिड होता है और वे आसानी से पचते नहीं हैं। प्रोटीन में अनाजों की यह हिस्सेदारी नेशनल इंस्टीट्यूट आफ न्यूट्रिशन (एनआइएन) की ओर से सुझाई गई 32 प्रतिशत की मात्रा से बहुत अधिक है। दालें, डेयरी उत्पाद और अंडे / मछली / मांस जैसे उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन के स्रोत भोजन से बाहर जा रहे हैं। सीईईडब्ल्यू अध्ययन में यह भी पाया है कि भोजन में सब्जी, फल और दाल जैसे प्रमुख खाद्य समूहों का सेवन कम है जबकि खाना पकाने के तेल, नमक और चीनी की अधिकता है।

अमीरों की थाली में गरीबों से 1.5 गुना ज्यादा प्रोटीन
सीईईडब्ल्यू के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत की सबसे अमीर 10 प्रतिशत आबादी सबसे गरीब आबादी की तुलना में अपने घर पर 1.5 गुना अधिक प्रोटीन का सेवन करती है, और पशु – आधारित प्रोटीन के स्रोतों तक उसकी पहुंच भी अधिक है। अभी भी भारत का खान-पान अनाज और खाना पकाने के तेलों की तरफ बहुत अधिक झुका हुआ है और ये दोनों ही पोषण संबंधित प्रमुख असंतुलन में भूमिका निभाते हैं।

लगभग तीन चौथाई कार्बोहाइड्रेट अनाज से आता है, और प्रत्यक्ष अनाज का सेवन अनुशंसित दैनिक भत्ते से 1.5 गुना अधिक है, जिसे निम्न आय वाले 10 प्रतिशत हिस्से में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए रियायती चावल और गेहूं की व्यापक उपलब्धता से और बल मिलता है। मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा और रागी के घरेलू उपभोग में सबसे ज्यादा गिरावट आई है। बीते एक दशक में प्रति व्यक्ति इसकी खपत लगभग 40 प्रतिशत गिरी है।

मोटे अनाज की जगह मैदा और तेल ने ली
इसी के साथ-साथ, पिछले एक दशक में सुझाए गए स्तर से 1.5 गुना अधिक वसा व तेल का सेवन करने वाले परिवारों का अनुपात दोगुने से भी अधिक हो गया है। उच्च आय वाले परिवारों में वसा का सेवन निम्न आय वर्ग की तुलना में लगभग दोगुना हो गया है। सीईईडब्ल्यू की रिसर्च एनालिस्ट सुहानी गुप्ता कहती हैं, मोटे अनाज और दालें बेहतर पोषण होने के साथ-साथ पर्यावरण के लिए फायदेमंद हैं, लेकिन इन्हें प्रमुख खाद्य कार्यक्रमों, जैसे कि पीडीएस में कम इस्तेमाल किए जाते हैं, कम उपलब्ध कराए जाते हैं, जिनमें चावल और गेहूं की अधिकता बनी हुई है।

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