मातम में बदली खुशी, सिजेरियन के बाद रक्तस्राव से प्रसूता की मौत
भिलाई। देखते ही देखते घर की खुशियां मातम में बदल गईं। 35 वर्षीय तरुणा की सिजेरियन सेक्शन से डिलीवरी कराई गई थी। पर सर्जरी के बाद डाक्टर उसका रक्तस्राव रोकने में विफल रहे। जब मरीज की हालत बहुत खराब हो गई तो उसे पास के एक बड़े अस्पताल को रिफर कर दिया गया। पर तब तक महिला के शरीर का पूरा खून निचुड़ चुका था। उसकी मौत हो गई।
नेहरू नगर के धनवंतरी अस्पताल में महिला की सिजेरियन डिलिवरी हुई थी। ऑपरेशन करने वाली डॉ. ललिता सिंह ने बताया कि रक्तस्राव रोकने, उनके साथ जनरल सर्जन ने गर्भाशय से जुड़ी खून की नलियों को बांधा, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। खून चढ़ाने के बाद भी हिमोग्लोबिन गिरते जाने से दूसरी परेशानियां शुरू हो गई तो उन्होंने तरुणा को नजदीकी आईसीयू सुविधा वाले पल्स अस्पताल भेज दिया।
पल्स अस्पताल प्रबंधन ने बताया कि यहां पहुंचने तक प्रसूति का हिमोग्लोबिन 1 ग्राम रह गया था। ऐसे में सारी कोशिशों के बाद भी उसकी जान नहीं बचाई जा सकी। बताया कि ब्रेन व दूसरे अंगों तक पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन नहीं पहुंचने (हैमरेजिक शॉक) और खून में क्लॉट बनने (डीआरआई) के कारण इलाज के दौरान उसने दम तोड़ दिया।
परिजनों के मुताबिक तरुणा को कोई परेशानी नहीं थी। उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को परेशानी बताकर करीब 7 बजे डॉक्टर ने सीजर किया। तबीयत नाजुक होने पर 10 बजे के आसपास पल्स अस्पताल भेजा। धनवंतरी अस्पताल में आईसीयू सुविधा नहीं है।
स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों के अनुसार सामान्य डिलिवरी कब जटिल हो जाए यह पहले से तय नहीं रहता। कुछ केस में सामान्य डिलिवरी भी जटिल हो जाती है। ऐसे में जहां आईसीयू, एनसेस्थेटिस्ट, गायनोकॉलोजिस्ट व बच्चों के डॉक्टरों के साथ ट्रेंड स्टॉफ का पैनल हो, डिलिवरी वहीं करानी चाहिए। गर्भावस्था के दौरान ब्लीडिंग को एपीएच और डिलिवरी के बाद ब्लीडिंग हो तो पीपीएच कहते हैं। दोनों स्थिति में गर्भवती या प्रसूति के गर्भाशय से खून की धार बहती है। इसे रोकने दवाओं के साथ खून की नलियों को बांधना व कुछ में गर्भाशय निकालना तक पड़ जाता है।
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