वायु प्रदूषण से बढ़ रहा स्तन कैंसर का जोखिम, भारत में 28% मामले स्तन कैंसर के
प्रदूषित हवा सिर्फ फेफड़ों और हृदय रोगों की वजह नहीं है, बल्कि महिलाओं में तेजी से बढ़ रहे स्तन कैंसर का एक गंभीर कारण भी बन रही है. अमेरिका में किए गए व्यापक अध्ययन ने संकेत दिया है कि वाहनों से निकलने वाला धुआं और हवा में मौजूद सूक्ष्म कण महिलाओं में स्तन कैंसर के जोखिम को उल्लेखनीय रूप से बढ़ा रहे हैं. चिंताजनक बात यह है कि यह खतरा उन क्षेत्रों में भी पाया गया, जहां वायु गुणवत्ता सरकारी मानकों के अनुसार सुरक्षित मानी जाती है. भारत में कैंसर के सभी प्रकार के मामलों में 28% मामले स्तन कैंसर के हैं. अमेरिका की शोध टीम ने कुल 400,000 से अधिक महिलाओं और 28,000 स्तन कैंसर मामलों का विश्लेषण किया। अध्ययन में पाया गया कि हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के स्तर में 10 पीपीबी की वृद्धि होने पर स्तन कैंसर का जोखिम लगभग 3% तक बढ़ जाता है। इसके अलावा पीएम 2.5 में हर 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की बढ़ोतरी के साथ हार्मोन-रिसेप्टर-नेगेटिव स्तन कैंसर के मामले बढ़े पाए गए, जो अधिक आक्रामक और कठिन उपचार वाला कैंसर प्रकार है।
वर्ष 2018 में भारत में महिलाओं में पाए गए सभी नए कैंसर मामलों में लगभग 28% स्तन कैंसर थे। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम के अनुसार वर्ष 2019 में स्तन कैंसर के 2,00,218 मामले दर्ज हुए, जो वर्ष 2023 में बढ़कर 2,21,579 पर पहुंच गए। वैश्विक अध्ययन दर्शाता है कि वर्ष 2022 में दुनियाभर में स्तन कैंसर से हुई 6,65,255 मौतों में से सबसे अधिक यानी 98,337 महिलाएं भारत में थीं। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत में स्तन कैंसर तेजी से बढ़ रहा है और उच्च प्रदूषण स्तर इस खतरे को और गंभीर बनाता है।
वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि यदि वायु प्रदूषण स्तर में सिर्फ 3% की कमी लाई जाए तो अमेरिका में करीब 9,500 महिलाओं को स्तन कैंसर से बचाया जा सकता है। यह अध्ययन अमेरिकन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित हुआ और इसका नेतृत्व यूएस एनआईएच की एलेक्जेंड्रा व्हाइट ने किया। इस संबंध में भारत के संदर्भ में स्थिति और गंभीर हो जाती है क्योंकि दिल्ली, रोहतक, धारूहेड़ा, पटना और भिवाड़ी जैसे शहरों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड तथा पीएम 2.5 स्तर कई गुना अधिक हैं।
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