Why mothers try to protect their rapist sons?

गुस्ताखी माफ : मां के लिए बलात्कारी भी राजा बेटा!

पांच साल की बच्ची से बलात्कार और हत्या के मामले में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। 2018 के इस मामले में निचली अदालत ने दोषी बेटे को मृत्युदण्ड तथा उसकी मां को पुलिस को गुमराह करने, साक्ष्य नष्ट करने तथा आरोपी का साथ देने के आरोप में सात साल की सजा सुनाई थी। मामला अपील के जरिए उच्च न्यायालय पहुंचा था। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अनूप चिटकारा और सुखविंदर कौर ने मां को दोषमुक्त कर दिया और अभियुक्त की सजा को 30 साल कर दिया। दोषी को तब तक जेल की चारदीवारी के अंदर रहना होगा जब तक कि वह अपनी पौरुषता के अंतिम चरण के करीब न पहुंच जाए। इस दौरान कोर्ट ने लड़कों के प्रति घरवालों और खासकर मांओं के व्यवहार को लेकर भी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि भारत में परिवार के सदस्य खासकर मांएं अपने प्यारे बेटों को “राजा बेटों” की तरह मानती हैं, चाहे वे कितने भी बड़े दुष्ट क्यों न हो। मां को जब पता चला कि उसका राजा-बेटा अपने नाम के अनुरूप भोला नहीं था और उसने एक पांच साल की बच्ची पर हमला कर उसकी बेरहमी से हत्या कर दी है, तो उसने पुलिस को सूचित करने या बच्ची के लिए न्याय मांगने के बजाय अपने बेटे को बचाने को प्राथमिकता दी। अपनी “रूढ़िवादी सोच” के कारण उसने अपने “राजा-बेटे” की रक्षा करने का प्रयास किया, जबकि एक सभ्य समाज में यह “बर्बर घटना” नहीं होती, और अगर ऐसा कोई अपराध होता भी है, तो एक माँ अपने “राजा-बेटे” की बजाय अबोध बच्ची के लिए न्याय को प्राथमिकता देती। पर अदालत ने मां को सभी आरोपों से बरी करते हुए कहा कि यही उसकी एकमात्र गलती यह थी कि वह अपने “राजा-बेटे” की रक्षा करने की कोशिश कर रही थी, जिसके लिए उसे दंडित नहीं किया जा सकता; हालांकि, उसका आचरण निंदनीय हो सकता है। दरअसल, आरोपी को बचाने की कोशिश केवल मां ही नहीं बल्कि परिवार का प्रत्येक सदस्य करता है। समाज में स्थापित इन्हीं मान्यताओं के चलते कई बार अपराधी को सजा देना मुश्किल हो जाता है।

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