Children go on fast to feel the pain of suffering and joy of giving

भूख-प्यास, क्रोध और व्यसन पर नियंत्रण की तालीम है रोजा

भिलाई। रमजान के दौरान इस बार छोटे-छोटे बच्चों ने भी रोजा रखा है। रोजा भूख-प्यास का अहसास तो कराता ही है साथ ही इन पर नियंत्रण रखकर ईश्वर की शरण को याद करने का अभ्यास भी कराता है। इस अवधि में लोग क्रोध, व्यसन और तमाम बुरी बातों से बचने का भी अभ्यास करते हैं। कोरोना योद्धा इन्हीं गुणों के कारण इस किठन दौर में भी अपना काम कर पा रहे हैं। इस बार रोजा रखने वाले बच्चों में कई तो बहुत छोटे हैं जो पहली बार रोजा रख रहे हैं।इन बच्चों में सेक्टर-7 निवासी आबान खान और उनकी बहन अयाना खान, पुलिस लाइन दुर्ग निवासी अरमान खान और अलविना खान, सेक्टर-7 निवासी अनाबिया शेख और इनाया शेख, राजनांदगांव निवासी अनम खान और अजान खान, शामिल हैं। बच्चे बताते हैं कि रोजा रखने में उन्हें कोई परेशानी नहीं हो रही बल्कि उनके लिए यह एक अनूठा अलौकिक अनुभव है।
होमियोपैथी चिकित्सक और सेवानिवृत्त बीएसपी कर्मचारी डा सैय्यद इस्माइल बताते हैं कि रोजा हमें बताता है कि भूख और प्यास क्या होती है। रोजा की हालत में झूठ, गीबत, गाली-गलौज, झगड़ा करने की मनाही है। एक महीने में इन तमाम बुराइयों से बचने का अभ्यास हो जाता है। रोजेदार के अंदर इंसानियत का दर्द, गम, भूख और प्यास का अहसास और ईश्वर के प्रति अनुराग उत्पन्न होता है। इस अवधि में अनाथ, विधवा, गरीब और जरूरतमंदों पर खर्च करने का विधान है। यह लोगों को एक सामाजिक प्राणी बनाने की भी व्यवस्था है।

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