Panel discussion on Black Fungus at MJ College of Nursing

एमजे कालेज में “ब्लैक फंगस” पर हाइटेक के विशेषज्ञों ने की चर्चा

भिलाई। एमजे कॉलेज में आज कोविड के बाद उभरी स्थिति पर हाईटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल की कोविड टीम के साथ एक पैनल डिस्कशन का आयोजन किया गया। एमजे कालेज ऑफ नर्सिंग द्वारा आयोजित इस परिचर्चा को संबोधित करते हुए विशेषज्ञों ने ब्लैक फंगस के लिए कॉकटेल थेरेपी को जिम्मेदार मानने से साफ इंकार कर दिया। विशेषज्ञों ने कहा कि हाइटेक में 2500 से अधिक कोविड इन-पेशेन्ट्स का इलाज किया गया पर किसी को भी ब्लैक फंगस का संक्रमण नहीं हुआ। उन्होंने इसके कारणों को स्पष्ट करने की कोशिश की।“कॉकटेल थेरेपी” पर परिचर्चा के सूत्रधार डॉ अपूर्व वर्मा के सवालों का जवाब देते हुए श्वांस रोग विशेषज्ञ डॉ प्रतीक कौशिक ने कहा कि कोविड की कोई दवा नहीं है। विभिन्न अंगों पर कोविड के प्रभाव की कोई ठोस जानकारी नहीं है। हम केवल कोविड से प्रभावित अंगों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें एंटीबायोटिक, स्टेरॉयड, एंटीफंगल सभी दवाइयों का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसे “कॉकटेल थेरेपी” कहा जाता है। इसमें डोज और टाइमिंग महत्वपूर्ण होता है। हमने कोविड के 2500 से अधिक भर्ती मरीजों तथा 5000 से अधिक ओपीडी मरीजों का इलाज किया पर यह समस्या किसी में नहीं देखने में आई।
डॉ कौशिक ने कहा कि कोविड का दूसरा दौर पहले से भी ज्यादा भयावह था। संभवतः म्यूटेशन के कारण हॉस्पिटल स्टे और मृत्यु दोनों में इजाफा हुआ। पहले जिन दवाओं से हम मरीजों को 5-7 दिन में ठीक कर पा रहे थे, दूसरे दौर में वे दवाइयां उतनी असरदार नहीं रहीं। मरीजों को ठीक होने में 21 से 45 दिन तक का समय लगने लगा।
मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ राजेश सिंघल ने बताया कि म्यूकॉर हमेशा वातावरण में रहता है पर वह इतना कमजोर है कि हमारे शरीर पर कोई असर नहीं कर पाता। कोविड के कारण शरीर कमजोर हुआ, रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हुई तो इसने दबोच लिया। समस्या इसलिए और बढ़ गई कि शासन के निर्देशों के बावजूद ओवर द काउंटर दवाइयों की बिक्री जारी रही। लोगों ने दवाइयों का मनमाना प्रयोग किया और खुद को खतरे में डाल लिया। ऑक्सीजन देने में भी लापरवाही हुई। कहीं एक ही ऑक्सीजन किट से लगातार कई-कई दिनों तक ऑक्सीजन दिया जाता रहा, कहीं हम्यूडिफायर में अमानक पानी का उपयोग किया गया।
एक अन्य सवाल के जवाब में रेटीना सर्जन डॉ छाया भारती ने कहा कि म्यूकॉर नाक से शुरू होकर सायनस और वहां से आंख और मस्तिष्क तक पहुंच सकता है। यह फेफड़े तक भी पहुंच सकता है। आंखों में संक्रमण होने पर यह भीतर ही भीतर फैलने लगता है जिससे आंखों के पीछे दबाव बनता है और आंखें बाहर की ओर उभरने लगती हैं। यहां तक कि आंखों को बंद करना मुश्किल हो जाता है। ऑप्टिक नर्व तक पहुंच जाने पर संक्रमित आंख को सर्जरी द्वारा हटाकर मस्तिष्क और दूसरी आंख को बचाय़ा जा सकता है।
परिचर्चा के सूत्रधार डॉ अपूर्व वर्मा ने कहा कि नाक की एंडोस्कोपी से ब्लैक फंगस का पता लगाया जा सकता है। संक्रमण साइनस तक रहने से एंडोस्कोप के माध्यम से ही सर्जरी कर उसे हटाया जा सकता है। संक्रमण के और फैल जाने से ओपन सर्जरी जरूरी हो जाती है। संक्रमण की सही सही स्थिति का पता लगाने में सीटी स्कैन की मदद ली जा सकती है। उन्होंने कहा कि ब्लैक फंगस जंगल की आग की तरह फैलती है इसलिए तत्काल इंटरवेंशन की जरूरत होती है। 12 घंटे से भी कम समय में यह साइनस से दिमाग तक पहुंच सकता है।
नर्सिंग स्टूडेन्ट्स के सवालों का जवाब देते हुए डॉ कौशिक ने कहा कि स्वच्छता के उच्चतम मापदण्डों का पालन करना जरूरी है। कुछ दवाइयां प्रकाश से प्रतिक्रिया करती हैं उन्हें देते समय अतिरिक्त सावधानी की जरूरत होती है।
दवा के डोज और मरीज में बारीक से बारीक परिवर्तन पर नजर गड़ाए रखना जरूरी है।
आरंभ में नर्सिंग कालेज की सहा. प्राध्यापक ममता सिन्हा ने स्वागत भाषण दिया। आयोजन में सहा. प्राध्यापक दीपक रंजन दास की महत्वपूर्ण भूमिका रही। महाविद्यालय की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर की प्रेरणा से आयोजित इस पैनल डिस्कशन में एमजे कालेज ऑफ नर्सिंग के प्राचार्य डैनियल तमिलसेलवन, एमजे कालेज के प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे, फार्मेसी कालेज के प्राचार्य डॉ टी कुमार, सभी फैकल्टी मेम्बर, स्टूडेन्ट्स बड़ी संख्या में मौजूद थे। नर्सिंग की छात्रा रामेश्वरी, अलब्राइट लकरा, मुक्तलता एवं सरस्वती ने प्रश्न पूछकर अपनी जिज्ञासा को शान्त किया। अंत में धन्यवाद ज्ञापन सहायक प्राध्यापक नेहा देवांगन ने किया।

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