छत्तीसगढ़ के लोकजीवन में प्रवाहमान हैं कबीर – डॉ परदेशीराम वर्मा
दुर्ग। छत्तीसगढ़ी के सुप्रसिध्द कथाकार तथा लेखक डॉ परदेशीराम वर्मा ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में कबीर की वाणी लोक जीवन में आज भी प्रवाहमान है। कबीर के चिंतन की परंपरा धर्मदास से होते हुए घासीदास तक पहुंची। छत्तीसगढ़ के दलित तथा पिछड़ी जातियों में बड़ी संख्या में उनकी अनुयायी देखे जा सकते है। कबीर के नाम पर बने मठ भले ही कबीर के विचार से भटक गये है, परंतु उनके अनुयायियों ने कबीर की सादगी, सरलता, सच्चाई, प्रेम और करूणा को बनाये रखा है। डॉ परदेशीराम वर्मा शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित वर्चुअल संगोष्ठी को मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति के विविध रूपों – नाचा-गम्मत, हबीब तनवीर के नाटकों से लेकर होली के फाग, राऊत नाचा के दोहों में कबीर की प्रभावी उपस्थिति देखी जा सकती है।
इससे पूर्व महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ आरएन सिंह ने कहा कि कबीर एक क्रांतिकारी कवि थे। उन्होंने अपने समय की सामाजिक विद्रुपताओं, बाह्यांडबरों पर करारा प्रहार किया तथा झूठ प्रपंच से दूर रहकर समाज के सामान्य जन को सच्चाई के रास्ते पर चलने की प्रेरणा दी। तत्कालिन समाज में जात-पात, छुआछूत का बोलबाला था। पुरोहितों, मौलवियों द्वारा धर्म के नाम पर साधारण जन को भ्रमित किया जा रहा था। ऐसे समय में कबीर ने जनता को सही राह दिखाने का कार्य किया।
डॉ शंकर निषाद ने कबीर की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 15वीं सदी के कवि कबीरदास का भक्तिकाल के संत कवियों में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। वे पढ़े-लिखे नहीं थे, अनुभवजन्य ज्ञान के आधार पर जीवन की सच्चाई को व्यक्त कर सके। उनके मौखिक रूप में कहे गये दोहे पढ़े लिखे लोगों के साथ ही अशिक्षित लोगों के लिए भी कंठहार बन गये। उन्होंने अपने समय के धार्मिक सामाजिक रूढ़ियों के साथ-साथ हिन्दू एवं मुस्लमान दोनों समुदाय के पाखंड एवं बाह्याचार पर तीखा प्रहार किया। उनके विचार आज भी प्रासंगिक है।
कार्यक्रम के आरंभ में डॉ कृष्णा चटर्जी ने मुख्य अतिथि डॉ परदेशी राम वर्मा, डॉ शंकर निषाद का परिचय दिया। इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा महाराष्ट्र के लगभग 190 प्रतिभागियों ने भाग लिया। कार्यक्रम के सफल संचालन में डॉ जय प्रकाश साव, डॉ शकील हुसैन, डॉ रजनीश उमरे, डॉ सरिता मिश्रा, प्रियंका यादव के साथ तकनीकी सहयोग प्रदान करने में शोधार्थी सौरभ सर्राफ एवं मृत्युंजय द्विवेदी का सहयोग सराहनीय रहा। कार्यक्रम का संचालन प्रो. थानसिंह वर्मा ने तथा आभार प्रदर्शन डॉ बलजीत कौर ने किया।