2500 old remains unearthed in Tarighat

2500 साल पहले तरीघाट में था व्यापारिक केंद्र, तराशे जाते थे मनके

भिलाई। जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर पाटन-अभनपुर मार्ग पर बसा है तरीघाट। यहां शिवनाथ नदी के किनारे 2500 साल पहले की बसाहट का इतिहास बिखरा पड़ा है। प्रमाण मिले हैं कि यहां एक सुव्यवस्थित बसाहट थी जहां कीमती पत्थरों को तराशा जाता था। पुरातत्व विभाग को राजा जगतपाल के टीले के उत्खनन के दौरान एक सुव्यवस्थित व्यापारिक केन्द्र मिला हुआ है। शिवनाथ नदी के तट पर होने के कारण ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि आवागमन के लिए नावों का उपयोग किया जाता था।

पुरातत्व विभाग को यहां पांच सभ्यताओं के निवास के प्रमाण मिले हैं। इस शहर की बनावट मोहन जोदड़ो की सभ्यता के समान व्यवस्थित सभ्यता प्रतीत होती है। उत्खनन में अनेक प्राचीन अवशेष प्राप्त हुए हैं जिनमें सोने के सिक्के, अर्ध मानिक, मिट्टी के मनके, मिट्टी के खिलौने और विष्णु की प्राचीन प्रतिमा शामिल है। यहां पर कुषाण कालीन, सात वाहन कालीन, कलचुरी कालीन सिक्के भी प्राप्त हुए हैं। इंडो ग्रीक व इंडोसेथियस मुद्राएं भी मिली हैं। पुरातत्व विभाग के अनुसार यहां मनकों की फैक्ट्री थी जहां कीमती पत्थर तराशे जाते थे। पांच सभ्यताओं की साक्षी रहा यह व्यापारिक केन्द्र संभवतः अग्निकांड का शिकार हो गया।
राजा जगतपाल टीले के समीप मां महामाया का मंदिर है। इसका निर्माण संभवतः 4000 साल पहले कल्चुरी राजाओं ने करवाया था। मंदिर में त्रिमूर्ति, महामाया, महालक्ष्मी, महासरस्वती एक ही स्थान पर विराजमान हैं। धमधा में भी ऐसा ही एक मंदिर है जहां ये तीनों देवियां एक ही स्थान पर स्थापित हैं।
मंदिर को बनाने में चूना, गुड़ और काले पत्थर का उपयोग किया गया है। मंदिर में लगे काले पत्थरों को देखकर लगता है कि इन पत्थरों को बाहर से मंगवाया गया था। मंदिर के गुम्बद में नागदेव की प्रतिमा उकेरी गई है। विशेष अवसरों पर अब भी नागदेव के दर्शन हो जाते हैं। चैत्र व क्वांर नवरात्रि में यहां ज्योतिकलश स्थापित करने की परम्परा चली आ रही है। मंदिर परसिर में दो शेर द्वारपाल की मुद्रा में हैं जिनके पिछले पैरों को जंजीर से बांध कर रखा गया है।

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