Senior Citizens are experiencing life long lockdown

स्थाई लॉक-डाउन में जी रहे हैं हमारे वरिष्ठजन – सतपथी

भिलाई। अवकाश प्राप्त पुलिस अधिकारी एवं सामाजिक कार्यकर्ता वीरेन्द्र सतपथी का मानना है कि अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव में हमारे माता-पिता स्थाई लॉक-डाउन और आइसोलेशन जैसी परिस्थितियों में जी रहे हैं। जब हम साल-छह महीने के लॉकडाउन में हांफ सकते हैं तो अंदाजा लगा सकते हैं कि उनपर क्या बीतती होगी। श्री सतपथी संधान संस्थान एवं कुटुम्ब समूह द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित संगोष्ठि “वरिष्ठ नागरिक और हमारा सामाजिक दायित्व” को संबोधित कर रहे थे।श्री सतपथी ने कहा कि उम्र के केवल दो ही पड़ाव होते हैं। एक बाल्यावस्था और दूसरा यौवन। वरिष्ठ नागरिकों की स्थिति भी बच्चों जैसी होती है इसलिए उन्हें बच्चा ही मान लेना चाहिए। दोनों की जरूरतें एक जैसी होती हैं। उनसे बातें करें, चाय-नाश्ते पर उनके साथ बैठें, साथ-साथ भोजन करें। आपको ऐसा करता देखकर आपके बच्चे भी सीखेंगे और आगे चलकर आपके साथ ही ऐसा ही आचरण करेंगे।
श्री सतपथी ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों के पास अनुभवों की थाती होती है। अनुभव के आधार पर लिये गये निर्णय अधिक कारगर होते हैं। यही कारण है कि प्रभु श्रीराम ने हनुमान, सुग्रीव और अंगद जैसे योद्धाओं के होते हुए भी अपनी सेना की बागडोर वृद्ध जामवंत को सौंपी थी। उन्होंने अनुभव के लाभ के कुछ उदाहरण भी दिए।
अमिताभ बच्चन को आड़े हाथ लिया
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को आड़े हाथ लेते हुए उन्होंने कहा कि आज वे जिस मुकाम पर हैं वहां लोग उन्हें फॉलो करते हैं। उन्हें सार्वजनिक मंच पर कुछ भी कहने से पहले अच्छी तरह सोच लेना चाहिए। केबीसी के सेट पर उन्होंने एक बार अपना स्कूली जीवन शेयर करते हुए कहा कि अपने दोस्तों के साथ दीवार फांद कर लड़कियों से मिलने जाया करते थे। इन बातों का कोई प्रयोजन नहीं था।
उन्होंने कहा कि समाज को अपने वरिष्ठ नागरिकों की कोई फिक्र नहीं है। अपने दीर्घ कार्यकाल में उन्होंने देखा है कि लोग पार्क, जिम, सामुदायिक भवन की तो मांग करते हैं पर वरिष्ठजन क्लब या वृद्धाश्रम की मांग कोई नहीं करता। अधिकांश परिवारों में आज वरिष्ठजन अलग-थलग पड़े केवल अपने अंत का इंतजार कर रहे हैं। मजबूर होकर हमें माता – पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण तथा कल्याण अधिनियम-2007 लाना पड़ा। माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल अब हमारा कानूनी दायित्व भी है। उन्होंने कहा कि 60 या 65 की उम्र में लोग केवल अपने कर्मजीवन से रिटायर होते हैं। बुढ़ापा केवल एक मानसिक स्थिति है, इसका उम्र से कोई लेना देना नहीं।
आरंभ में स्वागत भाषण संधान के प्रो. देवेन्द्र नाथ शर्मा ने दिया। संचालन प्रसिद्ध पर्यावरणविद डॉ अनिता सावंत ने किया। धन्यवाद ज्ञापन कुटुम्ब के मुखिया शायर मुमताज ने किया। इस अवसर पर अवकाश प्राप्त पुलिस अधिकारी वीरेन्द्र सतपथी, समाज शास्त्री डॉ अंजना श्रीवास्तव, काउंसलर डॉ आभा शशिकुमार, रवि श्रीवास्तव, विनोद साव, डा.एच.आर.वार्षणेय, डा.अशोक गणवीर, दीपक रंजन दास, भावना पाण्डेय, अरविंद सिंह, राजेंद्र सोनबोईर, विद्या गुप्ता, संजय दीवान, ई.वी.मुरली, राघवेंद्र सिंह, अनिता करडेकर, प्रदीप भट्टाचार्य, ऋषि गजपाल, शंकर चरण पाण्डेय, पोलम्मा, महेश चतुर्वेदी, राजेश प्रजापति, राहुल पटेल, सुमीत ताम्रकार, रफीक, वीरेंद्र पाण्डेय आदि अनेक प्रबुद्धजन मौजूद थे।

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