Treated by quack, boy spends 9 days in ICU

झोलाछाप ने ऐसी लगाई सुई की जान पर बन आई

भिलाई। गांव देहात में झोलाछाप डाक्टरों से सुई लगवा लेना आम बात है। पर यह कितना खतरनाक हो सकता है, इसका अंदाजा बघेल परिवार को नहीं था। बेमेतरा निवासी तोपसिंग बघेल के 12 वर्षीय पुत्र सागर को गिरने के कारण जांघ में चोट लगी थी। झोलाछाप ने उसका ऐसा इलाज किया कि उसे 9 दिन आईसीयू में बिताने पड़े।
हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल में बच्चे का इलाज कर रहे शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ मिथलेश देवांगन ने बताया कि 4 अप्रैल को जब बच्चे को यहां लाया गया तो उसकी हालत बहुत खराब थी। शरीर की गहराई में छिपी नस में खून का थक्का बन गया था। इसे डीप वेन थ्रॉम्बोसिस कहते हैं। संक्रमण बच्चे के फेफड़ों तक जा पहुंचा था तथा वहां भी खून का थक्का जम गया था। उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। ऑक्सीजन सैचुरेशन 60 प्रतिशत था। बालक को सीवियर निमोनिया हो गया था।
बच्चे को आईसीयू में शिफ्ट किया गया तथा नॉन इन्वेसिव वेन्टीलेटर पर रखते हुए इलाज प्रारंभ किया गया। खून का थक्का न जमे इसके लिए भी दवाइयां दी गईं। साथ ही संक्रमण से निपटने के लिए एन्टीबायोटिक्स देना प्रारंभ किया गया। पर दवाओं का कोई विशेष असर नहीं हो रहा था और बालक की स्थिति बिगड़ती जा रही थी। खतरे को देखते हुए दवाइयां बदली गईं तथा एन्टीबायोटिक्स को अपग्रेड किया गया। तब कहीं जाकर उसकी स्थिति संभलने लगी और खतरा टल गया। 9 दिन बाद 13 अप्रैल को उसे वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया।
हाइटेक के इंटेंसीविस्ट डॉ सोनल वाजपेयी ने बताया कि बच्चे को हालांकि छुट्टी दे दी गई है पर उसे कुछ इंजेक्शन्स अभी और लगाने होंगे। इंजेक्शन कब और किससे लगवाना आदि की पूरी हिदायत देकर बच्चे की अस्पताल से छुट्टी कर दी गई है। उन्होंने कहा कि गांव-खेड़े में आज भी लोग दर्द ज्यादा होने पर किसी से भी इंजेक्शन लगवा लेते हैं। उन्हें इंजेक्शन लगाने का अधिकार तक नहीं होता। कानून से बचने के लिए ऐसे लोग पर्ची तक नहीं देते। बेहतर होगा लोग जल्दबाजी न करें और आसपास के रजिस्टर्ड अस्पताल तक जरूर जाएं।

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