The need for hiring leopards

आखिर क्या जरूरत आ पड़ी नामीबिया से चीते मंगवाने की

चलो, अंततः लोगों ने आहार शृंखला (फूड सायकल) को स्वीकार कर ही लिया. मांसाहारी जानवर जंगलों में और मांसाहारी मनुष्य गांवों में आहार श्रृंखला को संतुलित रखते हैं. लोग अगर सिर्फ घास-पत्ता खाते रहे तो शाकाहारी पशुओं की संख्या इतनी अधिक हो जाएगी कि वो किसी के लिए कुछ भी नहीं छोड़ेंगे. खेतों में घुस आए इक्का-दुक्का मवेशियों को तो लोग लाठियों से हकाल देते हैं पर यदि जंगल, खेत, मोहल्ला और बाड़ी भी भेड़-बकरी, गाय-भैस, हिरन-सांभर से भर जाएंगे तो लोग खाएंगे क्या? जंगल की व्यवस्था भी इसी आहार शृंखला पर टिकी हुई है. मांसाहारी जानवर, शाकाहारी जानवरों की संख्या को सीमित करते हैं. जब जंगल में खाने को कुछ नहीं बचता तो शेर निकल कर गांव में आ जाता है. दुधारू पशुओं की चाल धीमी होती है, जिनका वे आसानी से शिकार कर पाते हैं. जंगलों की आहार शृंखला बिगड़ने का कारण मांसाहारी पशुओं का शिकार रहा है. राजा महाराजा अपनी मर्दानगी दिखाने के लिए शेरों का शिकार करते थे. महलों की सजावट में शेर की खाल और बारहसिंघे के सींगों का उपयोग किया जाता था. आदिवासी इन हिंसक प्राणियों के साथ घुल-मिल जाते थे. छत्तीसगढ़ के नारायणपुर का एक इलाका गढ़ बेंगाल के नाम से जाना जाता है. यहां एक लड़का रहता था चेंद्रू. वह माड़िया जनजाति से था. जब वह छोटा था तो उसके दादा ने उसे एक बाघ शावक लाकर दिया था. उसने उसका नाम रखा टेंबू. दोनों में खूब दोस्ती थी. वे साथ रहते, खेलते, खाते. स्वीडन के एक फिल्ममेकर अर्ने सक्सडॉर्फ की उसपर नजर पड़ी तो उन्होंने “द जंगल सागा” के नाम से फिल्म बनाई. चेन्द्रू मंडावी मशहूर हो गया. बहरहाल, बात हो रही थी शेरों के शिकार की. जब जंगलों में बाघ और शेर नहीं रहे तो शाकाहारी प्राणियों की संख्या इतनी बढ़ गई कि जंगल चौपट हो गए. हाथी गांव में घुसने लगे. जंगलों की आहार श्रृंखला को ठीक करने के लिए बाघों की जरूरत महसूस होने लगी. मांसाहारी प्राणियों में शेर, बाघ और चीते ही प्रमुख हैं. इनमें से चीते ही इकलौते ऐसे हैं जो मनुष्यों पर बहुत कम हमला करते हैं. इसलिए चीतों को दोबारा भारत लाने की बात चली. 1970 के दशक में ईरान से बात हुई तो उसने बदले में भारतीय शेर मांग लिया. अपने पास इतने शेर थे ही नहीं कि दिल बड़ा करके दो-चार दे देते. अब जाकर नामीबिया से सौदा पक्का हुआ है. नामीबिया पांच साल में भारत को 50 चीते देगा. चिड़ियाघर और सर्कसों में तो अब जंगली जानवर दिखते नहीं. जंगलों में भी केवल झलक ही दिखाई देती है. जिन्हें शेर चीतों को शिकार करते देखना है उनके लिए टीवी पर दर्जनों चैनल हैं. यू-ट्यूब है. इसलिए इन चीतों की जिम्मेदारी जंगलों की आहारशृंखला को महफूज रखने की होगी.

Pic credit Expert Africa

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