Chattisgarh Olympic to be all inclusive

छत्तीसगढ़ ओलंपिक में बच्चे-बूढ़े सभी दिखाएंगे अपना जौहर

खेलने का मतलब केवल मेडल जीतना नहीं होता. खेलकूद इंसान के साथ-साथ समाज को स्वस्थ और प्राणवंत भी बनाता है. खेलबो-जीतबो-गढ़बो-नवा छत्तीसगढ़ के नारे के साथ शुरू हुआ यह अभियान अब पूरे समाज को साथ लेकर चलेगा. छह अक्तूबर से छह जनवरी के बीच पूरा छत्तीसगढ़ खेलकूद के रंग में सराबोर होगा. इसमें बच्चे-बूढ़े सभी शामिल होंगे. सभी को अपनी उम्र, अपनी रुचि एवं अपनी दक्षता के हिसाब से खेलने का मौका मिलेगा. कई स्तरों पर होने वाली इन प्रतियोगिताओं में जीतने, सेलेक्ट होने और ऊपर तक जाने के अवसर होंगे. यह छत्तीसगढ़ का अपना ओलम्पिक होगा जिसमें स्थानीय खेलों को शामिल किया गया है. इन खेलों में भौंरा, पिट्ठुल, संखली, बांटी, बिल्लस, फुगड़ी, गेड़ी जैसे पारम्परिक खेलों के साथ ही अंतरराष्ट्रीय खेल कबड्डी और एथलेटिक्स भी शामिल होंगे. दादा-पोता एक साथ खेल मैदान में होंगे. महिलाओं को भी अपने बचपन में लौटने का मौका मिलेगा. खेलों का यह दौर ग्रामीण स्तर पर राजीव युवा मितान क्लब से शुरू होगा. विजेता जोन स्तर, विकासखंड स्तर, जिला स्तर और फिर राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में शामिल होंगे.

तीन आयु वर्गों में आयोजित इन प्रतियोगिताओं में 18 से कम, 18 से 40 साल और 40 साल से अधिक उम्र के लोग अपने-अपने वर्ग में खेलेंगे. खेलकूद की सबसे अच्छी बात ये है कि इससे सेहत तो सुधरती ही है, लोगों के परस्पर संबंध भी प्रगाढ़ होते हैं और मनोरंजन भी होता है. शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं. जब प्रौढ़ गेड़ी पर संतुलन बनाकर भागते-दौड़ते दिखेंगे, महिलाएं फुगड़ी खेलती दिखेंगी, तो दावा है कि लोग दांतों तले उंगलियां दबा लेंगे. पारम्परिक खेलों की यही तो खूबसूरती है. लोग खेलते अपने मनोरंजन के लिए हैं और सेहत का बोनस साथ में मिल जाता है. इसमें योगा भी है, कार्डियो भी है और पीटी भी. इसमें मांसपेशियों के साथ-साथ तंत्रिका तंत्र की भी मालिश हो जाती है. आज जब शहरी बुजुर्ग तमाम तरह की न्यूरो बीमारियों से जूझ रहे हैं तब गांव का बुजुर्ग अपने नाती-पोतों के साथ हंसी-ठिठोली करता दिख जाता है.

उसपर 70 या 80 साल की उम्र तक जीने या काम करते रहने का दबाव नहीं है. वह अगली पीढ़ी के लिए रास्ता छोड़कर अलग हट जाता है. वह रिटायर नहीं होता बल्कि मार्गदर्शक मंडल में चला जाता है. समाज का यह मार्गदर्शक मंडल कोई काल-कोठरी नहीं है. यहां इज्जत की कोई हानि नहीं होती. शादी ब्याह का न्यौता अब भी उनके नाम से ही आता है. उनका आशीर्वाद अनमोल होता है. गंभीर मसलों में उनकी राय भी ली जाती है और उसका सम्मान भी किया जाता है. पर यह परम्परा टूटने लगी थी. समय रहते छत्तीसगढ़ ने इसे थाम लिया. छत्तीसगढ़ में एक बार फिर पूरा परिवार, पूरा समाज एक साथ जिएगा, हंसेगा, खिलखिलाएगा. जिन्दगी में कमी-बेशी तो लगी रहती है, पर इसका मतलब यह थोड़े ही है कि लोग जीना छोड़ दें.

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