Teacher Job on Fake Certificate

सफेदा, फोटोकॉपी, सर्टिफिकेट और सरकारी नौकरी

जांजगीर चांपा में 17 साल पहले की गई शिक्षाकर्मियों की भर्ती में बड़ा घोटाला सामने आया है. लोगों ने यहां एक ही सर्टिफिकेट पर सफेदा लगाकर अपना-अपना नाम लिख लिया. उसकी फोटोकॉपी करवाई और नौकरी पर लग गए. कुछ लोगों ने तो असली-नकली कोई भी प्रमाणपत्र नहीं दिया और फिर नौकरी पर लग गए. आरोप हैं कि बिना प्रमाणपत्र या दस्तावेज के लोगों को स्काउट गाइड, एनसीसी, रासेयो, खेलकूद व अनुभव का बोनस अंक भी मिल गया. जैजैपुर जनपद पंचायत के इस मामले का खुलासा होने के बाद जांच शुरू कर दी गई पर उसका नतीजा अब तक सामने नहीं आया है. जिला शिक्षा अधिकारी के अनुसार जिन लोगों के खिलाफ शिकायत मिली है, उनकी विभागीय जांच करवाई जा रही है. यह तो होना ही था. सरकारी नौकरी में योग्यता कम और अर्हता ही ज्यादा देखी जाती है. अर्हता केवल प्रमाणपत्रों से बनती है. इसलिए पूरा फोकस प्रमाणपत्रों पर होता है. इन्हें नकली बनवाया जा सकता है. जाहिर है कि इन प्रमाणपत्रों को चलाने के लिए उम्मीदवारों ने अच्छी खासी रकम भी खर्च की होगी. पर इस रकम की लेनदेन का कोई प्रमाण नहीं होगा. अब, यह तो हो नहीं सकता कि फोटोकॉपी पर जांचकर्ता को शक न हुआ हो. वैसे भी, दस्तावेज सत्यापन के दौरान असली प्रमाणपत्र भी दिखाना होता है. दरअसल, नए दौर में पैसा ही भगवान है. आपके पास फाइल भर कर सर्टिफिकेट हों पर किसी नेता या अधिकारी से जानपहचान न हो,अधिकारियों की मुट्ठी गर्म करने के लिए रकम भी न हो तो आपकी आवाज नक्कारखाने में तूती ही साबित होगी. शिक्षा के क्षेत्र में पैसों का यह खेल काफी समय से चल रहा है. जैसे-जैसे नियामक संस्थाओं की भीड़ बढ़ रही है, रोज नए-नए पैंतरे सामने आ रहे हैं. कुछ लोग शौक से तो कुछ लोग मजबूरी में ही अपनी अर्हता बढ़ाने में लगे हुए हैं. 50-55 साल की उम्र में लोग पीएचडी कर रहे हैं. ऐसे लोगों के हौसलों की दाद देनी होगी जो उम्र के इस पड़ाव में परिवार का बोझ उठाते, नौ घंटे की नौकरी निभाते हुए भी पीएचडी कर पा रहे हैं. इनकी सुविधा के लिए थिसिस लिखने वालों की एक पूरी जमात खड़ी हो चुकी है. वे सर्वे से लेकर टाइपिंग और बाइंडिंग तक का सारा बोझ स्वयं उठा लेते हैं. इनके तार पीएचडी गाइड से जुड़े होते हैं जो इनके लिए मुर्गा तलाशते हैं. इस सेवा की कीमत लाखों में होती है. इसकी बिना पर मिलने वाले पीएचडी को फर्जी तो कदापि नहीं कहा जा सकता. पर इन्हें असली भी कैसे कहें? जब यह चल सकता है तो सफेदा लगे स्काउट-गाइड, एनसीसी, एनएसएस सर्टिफिकेट को भी स्वीकारने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. आखिर नए दौर में लोग सम्मान भी तो खरीद ही रहे हैं.

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