मूक फिल्म के दौर में इस अभिनेत्री ने पहली बार किया था ऑनस्क्रीन लिपलॉक
मुम्बई. भारतीय सिनेमा ने कई दौर देखे हैं. 1920 और 30 के दशक में जब मूक फिल्मों का दौर था, तब भारतीय सिनेमा भी बोल्ड था. आजादी के बाद फिल्म एडवाइजरी बोर्ड का गठन कर दिया गया. प्यार और सेक्स को दर्शाने के लिए फूलों का टकराना, बाढ़ का आ जाना, दावानल का धधक उठना जैसी प्रतीकात्मक क्लिप्स का इस्तेमाल किया जाने लगा. आज जब खुलापन अपने चरम पर है, आइए एक नजर डालते हैं मूक फिल्मों के दौर के बोल्ड किरदारों पर.
भारतीय सिनेमा में 1920-40 तक का दशक बोल्ड फिल्मों का रहा है. 1929 में बनी मूक फिल्म ‘अ थ्रो ऑफ डाइस’ सीता देवी ने ऑनस्क्रीन चारू रॉय के साथ लिपलॉक किया था. यह फिल्म महाभारत पर आधारित थी जिसमें दो राजा एक ऋषि की कन्या से प्रेम करते हैं. यह फिल्म पहले ‘बिलेत फेरोत’ (बांग्ला) के नाम से 1921 में बनी थी. 1933 में बनी फिल्म ‘कर्मा’ में देविका रानी और उनके निर्देशक पति हिमांशु राय के बीच एक चार मिनट तक चला चुम्बन का दृश्य था. 1932 में बनी फिल्म ‘जरीना’ में अभिनेत्री जुबैदा ने खूब बोल्ड सीन किये थे और दीर्घ चुम्बन के दृश्य भी किये थे. ललिता पवार ने भी 1922 में फिल्म ‘पति भक्ति’ में चुम्बन के दृश्य किये थे.
दरअसल 1896 में लूमियर बंधु चलचित्र को भारत लेकर आए. इसके बाद बनी फिल्मों में विदेशियों का योगदान बना रहा. तकनीक से लेकर विषय वस्तु के मामले में पश्चिम का असर साफ देखा जा सकता था. आजादी के बाद फिल्मों का नियमन भी शुरू हो गया और 1952 में सिनेमेटोग्राफ एक्ट भी पास हो गया. इसके साथ ही भारतीय फिल्मों से बोल्ड सीन्स और लिप लॉक सीन्स की भी विदाई हो गयी. अब प्यार को प्रदर्शित करने के लिए फूलों का टकराना और सेक्स के लिए भौरों का फूलों पर मंडराना, झरनों का तेज बहाव, नदी में बाढ़ का आना, जंगल में आग का लगना जैसे प्रतीकों का उपयोग प्रारंभ हो गया.
यह दौर 1950 से 60 के दशक तक चला. 1970 के दशक में राज कपूर फिल्मों ने एक नई परम्परा शुरू की. उनकी हिरोइनें बिकिनी पहनने लगीं. झीनी सफेद साड़ियां पहनकर कभी झरने में तो कभी नदी में अठखेली करती दिखीं. 1973 में आई फिल्म ‘बॉबी’ से ऑनस्क्रीन चुम्बन और लिप लॉक के दृश्यों की वापसी हो गई. ऋषि कपूर और डिम्पल कवाड़िया ने इस फिल्म में किशोर वय के प्रेम को बाखूबी प्रदर्शित किया. 1978 में ‘सत्यम शिवम सुन्दरम’ में जीनत एक साड़ी मात्र लपेटे रही. शशि कपूर और जीनत अमान के बीच चुम्बन का दृश्य भी फिल्माया गया. ‘राम तेरी गंगा मैली’ में पहली बार अनावृत्त वक्षस्थल और सुहागरात के दृश्यों को बड़ी खूबसूरती से फिल्माया गया. इस फिल्म में झरने के नीचे सिर्फ सफेद साड़ी लपेटकर नहाती मन्दाकिनी को दर्शक आज भी भूल नहीं पाए हैं.
इसके बाद तो निर्माता-निर्देशकों में होड़ सी लग गई. ‘सागर’, ‘जांबाज’, ‘दयावान’ से लेकर ‘कयामत से कयामत तक’ में युवा प्रेमी युगल के क्रियाकलापों को खूब उभारा गया. 1990 के दशक के बाद तो भारतीय फिल्मों में यह बेहद आम हो गया. 1996 में आई फिल्म ‘राजा हिन्दुस्तानी’ में करिश्मा और आमिर ने एक नई धारा शुरू कर दी. 2003 में आई फिल्म ‘ख्वाहिश’ में मल्लिका सहरावत और हिमांशु मलिक ने ढाई घंटे की फिल्म में 17 बार एक दूसरे का प्रगाढ़ चुम्बन लिया. 2004 में आई नेहा धूपिया की ‘जूली’ में भी इसकी भरमार थी पर फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिट गई. अनुराग बासु का ‘मर्डर’ तो इरोटिक थ्रिलर ही था. हृतिक रोशन-ऐश्वर्या राय, शाहिक-करीना कपूर, विद्या बालन अर्शद वारसी ने तो स्क्रीन पर गर्दा ही मचा दिया.
अब जबकि अधिकांश फिल्में ओटीटी प्लैटफार्म पर आने लगी हैं, तब बोल्डनेस की कोई लिमिट रह ही नहीं गई है. कुछ फिल्मों को तो सॉफ्ट पोर्न का दर्जा ही दे दिया गया है. ऐसी फिल्मों के शुरू होने से पहले ही स्क्रीन पर आपत्तिजनक दृश्यों के लिए दर्शकों को चेतावनी दे दी जाती है जिसमें – गाली गलौज, नृशंसता या सेक्स जैसे संकेत होते हैं.