Advisory on Karwa Chauth, More on shopping preference

पंडितों ने अब जारी की करवाचौथ की एडवाइजरी- कहा, ये न खरीदें

करवा चौथ को पहले उत्तर भारत का ही पर्व माना जाता था. विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए और कुंवारी कन्याएं स्वस्थ-सुन्दर पति के लिए यह व्रत करती थीं. टीवी सीरियल्स और हिन्दी फिल्मों ने अब इसे अखिल भारतीय पर्व बना दिया. अब पति-पत्नी का व्रत हो और उपहार की बात न हो यह तो हो नहीं सकता. अब तक लोग अपनी पत्नियों की इच्छा के अनुरूप उपहार देते थे. पर अब इसमें भी एडवाइजरी जारी हो गई है. प्रत्येक तीज त्यौहार के साथ शुभ मुहूर्त और शुभ-अशुभ उपहारों की चर्चा इन दिनों आम है. हिन्दी के अखबारों से लेकर सोशल मीडिया तक में इसपर काफी कुछ पढ़ने को मिल जाता है. इस बार करवा चौथ को लेकर एडवाइजरी जारी की गई है. इसमें कहा गया है कि चूंकि यह पर्व सुहागिनों का है, इसलिए इसमें लाल, पीले या हरे रंग का ही वस्त्र उपहार में देना चाहिए. श्वेत और काले रंग से बचना चाहिए. इन रंगों को शास्त्रों में अशुभ माना गया है. गोरी चिट्टी युवतियों से लेकर महिलाओं तक में इन दिनों डार्क या सीधे ब्लैक कलर का फैशन है. मैक्सिमम कंट्रास्ट के कारण ये कलर उनपर खूब फबते भी हैं. वैसे भी काले रंग के अशुभ होने का कोई प्रमाण नहीं है. सफेद को भी केवल वैधव्य से जोड़कर देखना उचित नहीं है. माता सरस्वती की कल्पना ‘शुभ्र वस्त्रावृता’ के रूप में की गई है. यह पवित्रता का भी रंग है. बच्चों को नजर से बचाने के लिए काले रंग का टीका लगाया जाता है. इन दिनों लड़कियां टखने पर काले रंग का धागा भी शायद इसी प्रयोजन से बांधती हैं. फिर इन एडवाइजरियों का क्या मतलब निकाला जाए? एडवाइजरी के अनुसार जिन वस्तुओं को खरीदने की सिफारिश की गई है वह वैवाहिक खरीदी से जुड़ी हैं. लाल और पीले वस्त्र दुल्हन के शृंगार का हिस्सा हैं. गायत्री परिवार पीले को प्राथमिकता देता है जबकि अन्यान्य सनातनी लाल जोड़े को श्रेष्ठ मानते हैं. वैसे इन दिनों रंग-बिरंगी घाघरा-चोलियों का चलन है. इसके अलावा उपहार में जेवरों की बात की गई है. ब्लैक मेटल और ह्वाइट मेटल के गहने, मोतियों की माला को इससे अलग कर दिया गया है. बच गए हैं सोने-चांदी के गहने. इससे ऐसा आभास होता है कि शुभ-अशुभ फल निकालने वाले बाजार की ताकतों के हवाले हो गए हैं. बाजार जैसा चाहता है, वे वैसी एडवाइजरी जारी कर देते हैं. दरअसल, भारतीय तीज त्यौहारों की यही खूबसूरती है. इसमें सभी वर्गों के व्यापार का भी ध्यान रखा जाता है. मिट्टी का नांदिया बैला, मिट्टी के दीपक, धान की बालियां, कमल का फूल, लाल-पीले रंग का सूती कपड़ा, गाय-बैल की साज सज्जा की वस्तुएं, सभी वर्गों के लिए साल में एक बार रोजगार का अवसर लेकर आती हैं. शीत ऋतु प्रारंभ होने से पहले किसी न किसी पर्व के बहाने नए वस्त्रों की व्यवस्था की जाती है. इसे यूं ही रहने दें. ज्ञान न बघारें तो लोग अपनी रुचि के अनुसार कम सम कम पहन ओढ़ तो लेंगे.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *