Soil day observed at SSSSMV

स्वरूपानंद महाविद्यालय में विश्व मृदा दिवस पर विविध आयोजन

भिलाई। स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय के सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग ने विश्व मृदा दिवस-2022 की थीम मृदा जहॉं भोजन शुरू होता है’ का आयोजन किया गया. विभागाध्यक्ष डॉ.शमा ए बेग ने बताया कि मिट्टी है तो पेड़-पौधे, अनाज हैं. हमारा जीवन है. अगर इसकी गुणवत्ता पर असर पड़ता है तो जीवन प्रभावित होता है. मिट्टी के क्षय होने से इकोसिस्टम और मनुष्य का स्वास्थ्य प्रभावित होता है.
उन्होंने बताया कि इस साल की थीम के अनूरूप हमें मिट्टी के स्वास्थ पर ध्यान देना है क्योंकि इसी से हम भोजन प्राप्त करते है. मिट्टी की गुणवत्ता खराब होगी तो पेड़-पौधे नहीं उगेंगे. न हमें स्वच्छ ऑक्सीजन युक्त वायु मिल पाएगी, न भोजन. प्रदूषण और कीटनाशकों के अधिक उपयोग के कारण जमीन बंजर हो रही है जिसे आर्गेनिक खेती कर रोका जाना होगा.
महाविद्यालय के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ दीपक शर्मा ने माइक्रोबायोलॉजी विभाग को बधाई दी और कहा कि मिट्टी में खनिज, जीव और जैविक घटक होते है जो मनुष्यों और जानवरों के लिए भोजन प्रदान करते है. प्रत्येक फसल के साथ मिट्टी अपना उर्वरता एवं पोषक तत्व को खो देती है जिन्हें हमें जैव उर्वरा एवं आर्गेनिक उर्वरा से वापस स्वस्थ करना होगा तभी हम इसका संरक्षण कर सकेंगे एक बेहतर मानव जीवन के लिए मृदा का संरक्षण एवं उसका स्वस्थ होना जरूरी है.
प्राचार्य डॉ हंसा शुक्ला ने कहा कि मिट्टी हमारे जीवन के लिए बेहद जरूरी है क्योंकि यह भोजन, कपड़े आश्रय और दवा समेत जीवन के प्रमुख्य साधनों का स्त्रोंत है, इसीलिए इसका संरक्षण करना जरूरी है. हमारी तरह मिट्टी को स्वस्थ रखने के लिए उचित मात्रा में पोषक तत्वों की संतुलित और विविध आपूर्ति आवश्यक है. आज हमें आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना होगा जिससे मृदा के साथ-साथ हम भी स्वस्थ रहे.
इसी थीम को ध्यान में रखते हुये सूक्ष्मजीव विज्ञान के विद्यार्थियों ने विभागाध्यक्ष डॉ.शमा ए बेग के निर्देशन में छत्तीसगढ़ की विभिन्न मिट्टीयों के प्रकार जानें एवं आर्गेनिक भोजन के लिए मिट्टी तैयार कर विभिन्न सब्जियों के प्रौधें रोपे . इसमें बी-एस-सी- एव एम-एस-सी के छात्रों ने भाग लिया. छात्रों ने मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने में सूक्ष्मजीव के उपयोग देखें एवं उनका प्रयोग भी किया जैसे – नाइट्रोजन स्पिरीकरण के लिये राइजोबियम का उत्पादन लैब में कर गमलों में प्रयोग भी किया. छत्तीसगढ़ की मिट्टीयों -कन्हार-काली मिट्टी, मटासी-लाल-पीली मिट्टी, डोरसा –लाल, पीली, काली मिट्टी, भाटा-मुरूमी मिट्टी के बारे में जाना.
कार्यक्रम को सफल बनाने में अमित कुमार साहू एवं योगिता लोखंडे सहायक प्राध्यापक माइक्रोबॉयोलाजी ने महत्तवपूर्ण योगदान दिया.

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