CGBSE adds professional courses in 12th Board

12वीं से हटाई एक भाषा, पर इतना ही काफी नहीं

छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल ने 12वीं बोर्ड की परीक्षा से भाषा का एक पर्चा हटा लिया है. अब विद्यार्थी को केवल एक ही मुख्य भाषा की परीक्षा देनी होगी. दूसरे पर्चे के स्थान पर 10 व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को शामिल किया गया है. इसका एक फायदा यह होगा कि विद्यार्थी को 12वीं पास करने के बाद विषय चुनने के लिए मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी. उसे एक दिशा 12वीं कक्षा में ही मिल जाएगी. दूसरा बड़ा फायदा यह होगा एक अनावश्यक विषय से वह बच जाएगा. वैसे भी भाषा की कक्षा में बैठता कौन है? इंग्लिश मीडियम वाला इंग्लिश और हिन्दी माध्यम वाला हिन्दी को ही मुख्य भाषा के रूप में चुनता है. वैसे अब वह चाहे तो  हिंदी, इंग्लिश, संस्कृत, मराठी, उर्दू, पंजाबी, सिंधी, बंगाली, गुजराती, तेलुगू, तमिल, मलयालम और उड़िया में से किसी भी एक अन्य विषय का चयन वैकल्पिक भाषा के रूप में कर सकता है. पर इसके अंक नहीं जुड़ेंगे. हालांकि सरकार के इस कदम का स्वागत करना चाहिए पर इतना ही काफी नहीं है. भाषा एक फालतू विषय बन कर रह गई है. भाषा विषय को यदि उपयोगी और व्यवहारिक बनाना हो तो सबसे पहले उसमें से व्याकरण को निकाल कर फेंक देना चाहिए. व्याकरण की जितनी पढ़ाई आठवीं कक्षा तक होती है, वह काफी होती है. इसके बाद विद्यार्थियों को साहित्य के अध्ययन और लेखन के लिए प्रेरित करना चाहिए. पिछले कुछ दशकों में भाषा शिक्षा एक ऐसे मुकाम पर पहुंच चुकी है जहां से लौटने का रास्ता नजर नहीं आता. अधिकांश विद्यार्थी तीर-तुक्का मारकर पासिंग मार्क्स ले आते हैं. भाषा में वस्तुनिष्ठ प्रश्न उन्हें यह मौका देते हैं. नतीजा यह है कि पहले जहां मैट्रिक पास लोग साहित्यकार बन जाते थे वहीं अब पोस्ट ग्रेजुएट ढंग से एक निबंध नहीं लिख पाते. वजह साफ है, 95 प्रतिशत बच्चे पाठ्यपुस्तक की कहानियों को नहीं पढ़ते. उन्हें पता होता है कि ग्रामर में तुक्का मारकर, निबंध, अनसीन पैसेज और पत्र के दम पर वे पास हो जाएंगे. भाषा की चर्चा किए बिना भाषा में महारत हासिल नहीं की जा सकती, इसे शिक्षाविदों को समझना होगा. इसमें सुनने और पढ़ने का बड़ा महत्व होता है. मातृभाषा शायद ही कोई गलत बोलता होगा जबकि उसकी कोई पढ़ाई उसने नहीं की होती. वह सुनकर सीखता है और सही सीखता है. उसकी भाषा जीवंत होती है. वह अच्छा वक्ता हो सकता है, अच्छा लेखक हो सकता है. इनमें से जो भी विद्यार्थी आगे जाकर शिक्षक, व्याख्याता या प्राध्यापक बनेंगे, यह विधा उनके बहुत काम आएगी. अभी हाल यह है कि 12+3=15 साल तक व्याकरण पढ़ने के बाद भी उनकी भाषा में न तो लोकोक्तियां हैं और न ही मुहावरे. उसकी भाषा अशुद्ध है, वर्तनी की अशुद्धियां तक कचोट जाती हैं. इसके साथ ही प्रश्न पत्र का ढांचा भी बदला जाए ताकि विद्यार्थी को अनिवार्य रूप से पाठ्यपुस्तक पढ़ना पड़े. तब तो भाषा की सेवा हो जाएगी, अन्यथा भाषा को अलविदा कहने का वक्त दरवाजे पर दस्तक दे रहा है.

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