Ramkrishna Mission becomes a game changer in Bastar

अबूझमाड़ में धड़क रही है स्वामी विवेकानंद की आत्मा

छत्तीसगढ़ का अबूझमाड़ क्षेत्र. एक ऐसा अबूझ इलाका जहां के अधिकांश गांवों तक आज भी सरकार नहीं पहुंच पाई है यह एक ऐसा इलाका है जहां का कोई ढंग का नक्शा तक सरकार के पास उपलब्ध नहीं था. एक तो यहां के दुर्गम जंगल रास्ता रोकते हैं वहीं पहाड़ियों, कंदराओं में छितराए हुए छोटे छोटे गांव कार्य को दुरूह बनाते हैं. इन गांवों के रहवासी अपने अस्तित्व के आरंभ से इसी तरह जी रहे हैं. ऐसे ही दूरस्थ गांवों में कभी अकेले ईसाई मिशनरियां सक्रिय थीं. 1981 में यहां रामकृष्ण मिशन का पदार्पण हुआ. नारायणपुर में आश्रम अस्पताल और स्कूल की स्थापना कर इस पूरे इलाके में गतिविधियां प्रारंभ की गईं. स्वयं को देश सेवा को समर्पित कर चुके स्वामी विवेकान्द के अनुयायी गेरुआ पहनकर इन जंगलों में, वन ग्रामों में बेखौफ, बेरोकटोक घूमते हैं. वे गांवों तक जाते हैं. परिवारों से सम्पर्क करते हैं. माड़िया में ही उनसे बातचीत करते हैं. उन्हें शिक्षा का महत्व समझाते हैं और फिर अपने साथ आश्रम ले जाते हैं. नक्सली इनका रास्ता नहीं रोकते. वन्य प्राणियों में मानो इन्हें अभयदान दे रखा है. पिछले लगभग डेढ़ दशक में यहां से हजारों बच्चे निकलकर आश्रम शाला पहुंचे हैं. इनमें से कुछ बच्चे अब कालेजों में हैं. कुछ को नौकरियां मिल चुकी हैं. स्वामी विवेकानंद ने यही तो सपना देखा था. यूरोप और अमेरिका में वेदांत का प्रचार प्रसार करने के बाद उन्होंने स्वदेश लौटकर लोगों को अंधविश्वासों और धार्मिक आडम्बरों से दूर ग्रामीण भारत की सेवा के लिए प्रेरित किया था. वे चाहते थे कि भारतीय महिलाएं भी पाश्चात्य देशों की महिलाओं की तरह सुशिक्षित हों. वे अपनी समस्याओं पर विमर्श करें और उनसे बाहर निकलने के रास्ते तलाशें. 1897 में विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना कोलकाता के पास बेलूर में इसी दोहरे उद्देश्य से की थी. वेदांत उनके गुरू रामकृष्ण के जीवन में सन्निहित थी. मिशन के हजारों आश्रम आज देश के कोने कोने में रहकर बीहड़ अंचलों में लोगों की सेवा कर रहे हैं. आज स्वामी विवेकांद का जन्म दिवस है. पूरा देश आज युवा दिवस मना रहा है. आज विश्व के सर्वाधिक युवा भारत में निवास करते हैं. पिछले कुछ दशकों में युवाओं में समाज सेवा के प्रति एक जुनून पैदा हुआ है. वे इसका अध्ययन भी कर रहे हैं और इस दिशा में नवाचार भी कर रहे हैं. वे ब्रम्हचारी नहीं है पर एकनिष्ठ सेवाभाव उन्हें संन्यासी की श्रेणी में जरूर लाकर खड़ा कर देता है. लघु भारत भिलाई की ही बात करें तो यहां आस्था, अर्पण, स्नेहसंपदा, परमार्थम जैसी संस्थाएं अपने-अपने ढंग से समाज की सेवा कर रहे हैं. युवा समाजसेवी साधन और संसाधन जुटाने के नए तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं. दुनिया भर से लोग ऐसे प्रकल्पों की मदद भी कर रहे हैं. सही भी है, हर काम सरकार पर नहीं छोड़ना चाहिए. थोड़ा हाथ-पैर हम सभी को मारना चाहिए.

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