Utopia burst, Vande Bharat discontinued

गुस्ताखी माफ : टूटा भ्रम तो बंद हुआ वंदे भारत

देश की एक बड़ी आबादी यूटोपिया में जी रही है. यह आबादी का वह हिस्सा है जो बातों-बतोलेबाजियों में ज्यादा यकीन करता है. यह केन्द्रीय प्रचार तंत्र का शिकार हो गया और इसे चारों तरफ सिर्फ हरियाली ही हरियाली नजर आने लगी. पर हकीकत न तो कभी ज्यादा बदलती है और न ही बदली थी. देश को लगा कि नई सरकार के नेतृत्व में देश ने एकाएक तरक्की की राह पर कुलांचे भरना शुरू कर दिया है. दुनिया भर में जब महंगाई चरम पर है तब भारतीय मौज कर रहे हैं. लोगों की जेब में खूब पैसा है जिसपर सरकार डाका डाल सकती है. रेलवे इस देश के गरीबों के लिए आवागमन का एकमात्र साधन हुआ करती है. यह लाखों लोगों के रोजगार का साधन भी है. लोग लोकल ट्रेनों से सफर कर दूर-दराज के अपने नियोजन स्थल पर पहुंचते हैं. पश्चिम बंगाल में तो कुछ लोगों की जिन्दगी लोकल ट्रेन और दफ्तर में ही गुजरती है. वो घर जाते हैं तो केवल नहाने, कपड़े बदलने और एक वक्त का भोजन करने के लिए हैं. घर पर उन्हें 2-4 घंटे की नींद भी मुश्किल से नसीब होती है. ऐसे लोगों को ट्रेनों में खड़े-खड़े, बैठे-बैठे सोते देखा जा सकता है. मुम्बई की लोकल ट्रेनें भी इस शहर की ट्रैफिक से बचाकर समय पर दफ्तर पहुंचाने का काम करती हैं. पर इसी रेलवे को केन्द्र सरकार ने अपने मनोरंजन का साधन बना लिया. जो लोग हवाई जहाज से यात्रा करते हैं वो बुलेट ट्रेन के बारे में बातें करते रहे. उसकी यशोगाथा गाते रहे. बात-बात पर फ्लाइट पकड़ने वालों ने भी वंदेमातरम ट्रेन के साथ सेल्फी लेकर पोस्ट किया. इधर, सैकड़ों ट्रेनों के लगातार कैंसल होने और घंटों विलंब से चलने के कारण कईयों की नौकरी छूट गई तो कईयों का नौकरी करने का खर्च बेतहाशा बढ़ गया. जब रेलवे को वंदेभारत की हकीकत पता चली तो उसने वही किया जो करना जरूरी था. उसने बिलासपुर-नागपुर वंदेभारत ट्रेन को बंद कर दिया. अब इसका स्थान तेजस ले रही है. तेजस में किराया कुछ कम पर वास्तविक किराए से अभी भी बहुत ज्यादा है. वंदेभारत की सीटें केवल दो तिहाई भर पाती थीं. सरकार को उम्मीद है कि तेजस में कुछ और लोग सवार होना अफोर्ड कर पाएंगे. दरअसल, अवधारणा ही गलत है. परिचालन व्यय अपनी जगह है पर नजर मुनाफे पर नहीं सुविधा के विस्तार पर होना चाहिए. सरकार यात्रियों की जेब से न केवल वंदेभारत के नाम पर अधिक से अधिक पैसा निकालने की कोशिश कर रही थी, बल्कि अब भी तेजस के नाम पर कर रही है. दरअसल, देश नामकरण संस्कार के युग में जी रहा है. नामकरण संस्कार चाहे कितना भी भव्य हो, इससे मिलता केवल नाम ही है. यश तो भावी जीवन की गर्भ में होता है. थोड़ा फोकस उसपर भी कर लें तो बेहतर होगा. अब तो दूसरा कार्यकाल भी पूरा होने को है. अब जिद में वंदेभारत को दोबारा शुरू कर दिया गया है. हां! इसके डिब्बों की संख्या आधी कर दी गई है. काश भाड़ा कम कर दिया होता.

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