गुस्ताखी माफ : लक्जरी कार, विदेशी कुत्ता और गोठान
‘कका’ ने विपक्ष के गोठान भ्रमण का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि गोठानों में जाकर भाजपा देखे कि वहां क्या हो रहा है. यदि कोई कमी दिखाई देती है, कोई सुझाव देना चाहती है तो उसका स्वागत है. इनपर अमल कर गोठानों को और भी बेहतर बनाने की कोशिश की जाएगी. इसी को रचनात्मक सहयोग कहते हैं जिसकी देश को जरूरत है. पर भाजपा की गोठान समिति कहां कुछ देखने गई थी. उसे तो केवल गौठान भ्रमण की फोटो चाहिए थी ताकि बयान जारी कर सके कि गोठानों में घोटाला हो रहा है. गोठान में गाय नहीं है, चारा नहीं है, पानी नहीं है. वो तो गायों से केवल यह पूछने गए थे कि घोटाला कितने का हुआ है. लौटते ही 13 करोड़ के घोटाले का आरोप सरकार पर मढ़ दिया. यह सही है कि अधिकांश लोगों को अपना इतिहास नहीं पता. बुद्धि-वुद्धि का तो वैसे भी यहां कोई काम नहीं है. विचारवान लोगों को भाजपा पहले ही सेकुलर और कम्युनिस्ट कहकर रिजेक्ट कर चुकी है. पर उसे नहीं पता कि ऐसा करके वह उन महापुरुषों को भी रिजेक्ट कर चुकी है जिन्होंने देश के नवजागरण का मार्ग प्रशस्त किया. खैर, यहां तक तो उनका झूठ चल गया. पर उन्हें गोठानों को लेकर झूठ नहीं बोलना चाहिए था. गोठानों को न केवल कांग्रेसी और भाजपाई देख रहे हैं बल्कि आम जनता भी देख रही है. यह उनकी आंखों के सामने है. इसलिए जब भाजपा ने आरोप लगाया तो ‘कका’ ने तुरंत पलटवार कर दिया. उन्होंने कहा कि लक्जरी गाड़ियों में विदेशी कुत्तों के साथ घूमने वालों को गोठान और गौशाला का फर्क नहीं मालूम. उन्हें नहीं मालूम की गर्मियों में मवेशियों को किसी भी शेड में बांधकर नहीं रखा जाता. यह एक हकीकत है जिससे गांव का बच्चा-बच्चा वाकिफ है. उन्हें पता है कि गर्मियों में शेड तपने लगते हैं. यही नहीं एक ही स्थान पर ज्यादा मवेशियों को इकट्ठा करने पर उनके शरीर की गर्मी से उस स्थल का तापमान बढ़ जाता है. इसलिए मवेशी खुली जगहों पर चले जाते हैं जहां उनके रोएं से होकर हवा गुजरती है और उनका शरीर ठंडा होता है. पर यह बात भाजपाइयों को नहीं मालूम. फकत साढ़े चार साल में भाजपा भूल गई है कि उनके कार्यकाल में जो गौशालाएं बनी थीं, वहां हजारों की संख्या में गौवंश का भूख-प्यास से निधन हो गया. गौशालाओं के नाम पर जमीन और फंड्स की बंदरबांट की गई. दरअसल, भाजपा अपने कृतित्व के बल पर नहीं बल्कि कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश के बूते सत्ता में थी. कांग्रेस का एक लंबा इतिहास है. उसमें गलतियां निकाली ही जा सकती हैं जबकि भाजपा का स्लेट साफ था. उनके खाते में जमा-खर्च कुछ भी नहीं था. पर केंद्र में साढ़े आठ साल और प्रदेश में पंद्रह साल की सत्ता ने ही यह साबित कर दिया कि सत्ता का केवल चेहरा बदलता है, वरना हमाम में सभी नंगे हैं.