पर्यावरण दिवस पर चार गांव के उन्नत किसानों ने एमजे कालेज में रोपे पौधे
भिलाई। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आज चार गांवों से आए उन्नत किसानों ने एमजे कालेज में पौधे रोपे. ये गांव एमजे कालेज की चारों दिशाओं में स्थित हैं. रोपे गए पौधों में मौलश्री, नीम, आम, कटहल, अमरूद और जामुन के वृक्ष शामिल हैं. इन पौधों को जिला प्रशासन के विधिक साक्षरता प्रकोष्ठ द्वारा उपलब्ध करवाया गया था. कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा किया गया था.
महाविद्यालय की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर की प्रेरणा से आयोजित इस अभिनव कार्यक्रम में पाटन के ग्राम अचानकपुर रोहित कुमार साहू, ग्राम आमटी से अशोक कुमार चौधरी, अर्जुन्दा तिलखैरी से लीलाधर साहू तथा ग्राम बासीन (करंजा भिलाई) से घनश्याम बंछोर शामिल थे. विधिक सहायता प्रकोष्ठ उमाकांत देवांगन एवं रामदेव गुप्ता उपस्थित हुए. वे दस पौधे लेकर इस कार्यक्रम में शामिल हुए.
प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे एवं राष्ट्रीय सेवा योजना कार्यक्रम अधिकारी शकुन्तला जलकारे की अगुवाई में रासेयो स्वयंसेवकों ने सुबह पहुंचकर पौधरोपण के लिए गड्ढे तैयार किये. महाविद्यालय के सभी एचओडी एवं अध्यापकवृंद के साथ ही बड़ी संख्या में विद्यार्थी भी इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए.
अचानकपुर से आए रोहित कुमार साहू ने बताया कि उन्होंने ऑर्गेनिक खेती पर काफी काम किया है. साथ ही छत्तीसगढ़ के धान की किस्मों को सहेजने और उन्हें आगे बढ़ाने का काम भी कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि चावल अनुसंधान केन्द्र कटक ने उन्हें 5-6 वर्ष पूर्व ब्लैक राइस के बीज उपलब्ध कराए थे. उन्होंने अपने खेतों में इसे उपजाया और फिर विभिन्न जिलों के 50 किसानों को ब्लैक राइस के बीज उपलब्ध कराए. यह धान यहां अच्छा हो रहा है तथा मधुमेह रोगियों के लिए माकूल होने की वजह से इसकी देश विदेश में अच्छी मांग भी है. उन्होंने गौ-मूत्र से कीटनाशक भी तैयार किये हैं और इसके उपयोग का एक बड़ा डेटाबेस भी तैयार किया है.
आमटी के अशोक कुमार चौधरी प्रोटीन धान की किस्मों को आगे बढ़ा रहे हैं. इस धान के चावल में 11 प्रतिशत तक प्रोटीन है. वे इसके बीज देसी तरीके से तैयार कर उसे अन्य जिलों के किसानों को उपलब्ध करा रहे हैं. धान की इस किस्म की भी अच्छी खासी मांग है जिसका अच्छा पैसा भी किसानों को मिल रहा है.
सभी उन्नत किसानों का मानना है कि यदि खेती किसानी थोड़ी सूझबूझ के साथ कृषि विकास केन्द्रों के सहयोग से किया जाए तो किसानों के खेत सोना उगल सकते हैं. उन्होंने बताया कि अधिकांश किसान केवल सरकार के लिए धान उगा रहे हैं, यही कारण है कि धान की अच्छी किस्मों पर ज्यादा काम नहीं हो पा रहा है. पर बड़े किसान अपने खेतों के एक हिस्से में अब प्रयोग कर रहे हैं. जल्द ही बाजार से लगभग गुम हो चुकी सफरी और मासुरी जैसे चावल एक बार फिर दिखाई देने लगेंगे.