गुस्ताखी माफ : हिंसा और नफरत की राजनीतिक बिसात
देश की सत्ताधारी पार्टी का एजेंडा है – कांग्रेस मुक्त भारत. 1885 में जब इसकी स्थापना हुई तो इसका प्रमुख उद्देश्य भारतीयों के लिए सत्ता में अधिक भागीदारी सुनिश्चित करना था. महात्मा गांधी के नेतृत्व में इसी पार्टी ने पहली बार एक राष्ट्रव्यापी स्वाधीनता आंदोलन शुरू किया. मारकाट से युद्ध जीतने वाली दुनिया को अहिंसा का रास्ता दिखाया. ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ यह पहला संगठित आंदोलन था जो बाद में अनेक देशों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना. अब बाप को वृद्धाश्रम भेजने का वक्त आ गया है.
आजादी के बाद नेहरू ने देश को आत्मनिर्भर बनाने सार्वजनिक क्षेत्र की स्थापना की, पंच वर्षीय योजनाओं की नींव रखी. इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े किए, बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया. राजीव गांधी ने देश में तमाम विरोधों के बीच कम्प्यूटर युग की शुरुआत की. पर कुछ लोगों को इसमें सिर्फ परिवारवाद दिखता है. आज सरकार उधार का बुलेट ट्रेन खरीद रही है, देश के संसाधन धनकुबेरों को सौंप रही है, बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत बुला रही है. बहुसंख्यकों को रिझाने के लिए देश को गृहयुद्ध में धकेल रही है. मजे की बात यह है कि इसका ठीकरा भी वह कांग्रेस पर फोड़ने की कोशिश कर रही है. वह लोगों को यकीन दिलाने की कोशिश कर रही है कि कुछ ही सालों में यह देश मुसलमानों या ईसाइयों का हो जाएगा और हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएंगे. अर्थात, जो काम ईसाई 2000 साल में नहीं कर पाए, मुसलमान 1600 साल में नहीं कर पाए, वह अब हो जाएगा. बीमारी से लेकर अवर्षा तक के लिए पूजा-पाठ की शरण में जाने वाले अंधविश्वासी इसपर भी यकीन कर रहे हैं. भाजपा नेता केदार कश्यप और कांग्रेस नेता कवासी लखमा के बीच धर्मांतरण पर वाकयुद्ध हो रहा है. केदार कह रहे हैं कि समूचे कांग्रेस का धर्मांतरण हो गया है. मजबूर होकर स्वास्थ्य मंत्री सिंहदेव को कुर्ते के बटन खोलकर अपना लाकेट दिखाना पड़ता है. सवाल यह उठता है कि जिस सनातन संस्कृति ने विश्व को प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया, वहां प्रेम का मतलब जिहाद हो गया? यह हो क्या रहा है देश में? देश के भीतर एक कौम की आर्थिक नाकेबंदी की जा रही है तो दूसरे के खिलाफ हिंसक आंदोलन हो रहे हैं. यह तो सरासर उकसाने वाली हरकते हैं. मंशा इस उकसावे से होने वाली घटनाओं का उपयोग भी उन्हीं के खिलाफ करने की है. राजनीति इतनी गंदी हो सकती है? सनद् रहे कि जब फूलन जैसी बेचारी को भी जरूरत से ज्यादा प्रताड़ित और अपमानित किया जाता है तो वह बीहड़ों में जाकर बंदूक उठा लेती है और “बेहमई” हो जाता है. कमरे में बंद बिल्ली शेरनी से ज्यादा खतरनाक होती है. बेहतर हो सरकार राष्ट्रधर्म और राजधर्म का पालन करे. वरना इतिहास उसे कभी माफ नहीं करेगा.