Why Ujjwala Gas failed to deliver

गुस्ताखी माफ : मुफ्त का राशन और हजार रुपए से ऊपर का सिलिंडर

महिलाओं को चूल्हा फूंकने से निजात दिलाने के लिए मोदी सरकार ने 2016 में उज्ज्वला गैस कनेक्शन योजना की शुरुआत की थी. यह योजना निपट गरीबों को मुफ्त में गैस सिलिण्डर, रेगुलेटर और चूल्हा प्रदान करती है. 2019 तक इस योजना के तहत 5 करोड़ परिवारों को गैस कनेक्शन दिए जाने थे. इसपर कितना काम हुआ, गरीबों का जीवन कितना बदला, इसका कभी कोई सर्वे नहीं हुआ. अनेक परिवारों में गैस का चूल्हा पुरानी साड़ी में लिपटकर आलमारी के ऊपर जा बैठा है. सिलिण्डर स्वयं स्टैंड बना हुआ है. गरीब महिलाएं आज भी पाइप लेकर लकड़ी चूल्हे में फूंक मार रही हैं. दरअसल, घर गृहस्थी से कटे लोगों को इस बात कोई इल्म नहीं कि केवल सिलिंडर और चू्ल्हे से खाना नहीं बनता. गैस रिफिल भी करवानी पड़ती है. 2023 में आंकड़े सामने आए कि 4 करोड़ से ज्यादा लोगों ने कभी उज्ज्वला गैस की रिफिल नहीं करवाई. बावजूद इसके योजना का द्वितीय चरण प्रारंभ हो चुका है. 2014 में जब रसोई गैस का सिलिंडर 410 रुपए था, तब भी यह गरीब की पहुंच से बाहर ही था. आज इसकी कीमत 1200 रुपए के करीब है. रसोई गैस ने 2016 में ही 1000 का आंकड़ा पार कर लिया था. अमीरी गरीबी अपनी जगह है पर सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उज्ज्वला रसोई गैस योजना का असली उद्देश्य क्या था? जिन परिवारों को सरकार राशन खरीदने में असमर्थ मानती रही उन्हें भी गैस का चूल्हा थमा दिया! सनातन की छोड़ें, जब से मानव जीवन अस्तित्व में आया है उसकी प्राथमिकताएं तय हैं. पहले पेट भरने की चिंता होती है. पेट भर जाए तो वस्त्र की जरूरत होती है. ये दोनों जरूरतें पूरी हो जाएं तब कहीं जाकर मकान की तलब होती है. यही स्वाभाविक है. पर भाजपा की प्राथमिकताएं, कम से कम छत्तीसगढ़ में तो उलटी ही हैं. वह प्रधानमंत्री खोली योजना, इन्हें आवास कहना ज़रा मुश्किल है, को लेकर राज्य सरकार पर हमलावर है. वह तो अच्छा हुआ कि छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने आर्थिक सर्वेक्षण शुरू कर दिया. अब जाकर खुलासा हो रहा है कि केन्द्र प्रवर्तित योजनाओं का क्रियान्वयन कितना हुआ, कितने लोग लाभान्वित हुए और कितने लोग इन योजनाओं से खुश हैं. रोजगार का अभाव और लगातार बढ़ती महंगाई ने गरीबों का जीना मुश्किल कर रखा है. पहले यह आम जानकारी हुआ करती थी कि पेट्रोल डीजल के भाव बढ़ते हैं तो हर चीज महंगी हो जाती है. पर यह सरकार तो सस्ती रेल यात्रा के भी खिलाफ है. जिनकी जेब में पैसा है, उन्हें यह सरकार खूब भा रही है. आजादी के बाद पहली बार एक ऐसा वर्ग भी पैदा हो गया है जिसे इस बात का मलाल है कि उसके दिए टैक्स के पैसों से गरीब मौज कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर ऐसे ही लोग उत्पात मचाए हुए हैं. लव जिहाद और धर्मांतरण का राग भी यही लोग अलाप रहे हैं. इनकी जेबें भरी हुई हैं, फ्यूचर सिक्योर है. इनके नालायक बच्चे भी मोटी फीस भरकर डिग्रियां कबाड़ रहे हैं. विकास की इनकी परिभाषा भी अलग है. ये भारत को अमेरिका बनाना चाहते हैं.

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