Critical patient operated and saved in Hitek Hospital

गले हुए फेफड़े, कमजोर दिल और ऊपर से हर्निया का दर्द

भिलाई. कभी-कभी दो समस्याएं मिलकर तीसरी समस्या को इतना गंभीर बना देते हैं कि इलाज करना तक मुश्किल हो जाता है. कुछ ऐसा ही हुआ एक सीनियर सिटिजन मरीज के साथ. हर्निया की शिकायत लेकर वे हाइटेक हॉस्पिटल पहुंचे. उनके दिल और फेफड़ों की हालत ऐसी थी कि आसान लगने वाली यह सर्जरी भी जोखिम वाली हो गई थी. अंततः कार्डियोलॉजी समेत तीन विभागों ने मिलकर मरीज का प्रबंधन किया और अंततः वह ठीक होकर घर चला गया.
60 वर्षीय हरिहर प्रसाद को हर्निया हो गया था जिसके कारण वो काफी तकलीफ में थे. इसका एकमात्र इलाज सर्जरी होती है. सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ नवील शर्मा ने बताया कि मरीज का दिल बहुत कमजोर था जिसके चलते सर्जरी में काफी जोखिम था. इसलिए उन्हें हृदय रोग विभाग के डॉ आकाश बख्शी के पास रिफर कर दिया गया.
डॉ बख्शी ने बताया कि जांच करने एवं मरीज से पूछताछ करने पर जो जानकारी सामने आई वह चिंतित करने वाली थी. 10-12 साल पहले मरीज को टीबी हो गया था. इससे उनके फेफड़े 30 से 40 प्रतिशत तक नष्ट हो चुके थे. सीटी स्कैन में फेफड़े केवल जाली की तरह नजर आ रहे थे. इसकी वजह से धीरे-धीरे हृदय भी कमजोर हो गया था. हर्निया की वजह से अंतड़ियों में सूजन थी जिसके कारण हृदय पर दबाव पड़ रहा था.
डॉ बख्शी ने बताया कि सबसे पहले मरीज के हृदय को दबाव से बचाने के प्रयास किये गये. इसके लिए उसके शरीर से 8 से 10 लिटर द्रव को हटाना पड़ा. इससे हृदय की क्रियाशीलता में कुछ वृद्धि हुई. पर जैसे ही हर्निया का दर्द उठता मरीज फिर से बेचैन हो जाता और हृदय की चाल भी गड़बड़ा जाती. समस्या यह थी कि मरीज की हालत नाजुक थी और हर्निया की सर्जरी के बिना उसे पूरा आराम नहीं मिलने वाला था.
मरीज को अस्पताल में भर्ती हुए लगभग 15 दिन बीत चुके थे. इसके बाद डॉ बख्शी एवं डॉ नवील शर्मा ने गहन मंत्रणा की और मरीज के परिजनों को भी विश्वास में लिया. जोखिम के बारे में पूरी जानकारी उन्हें बता दी गई और उनकी राय ली गई. उनकी सहमति मिलने के बाद हर्निया की सर्जरी कर दी गई. इसमें निश्चेतना विशेषज्ञ डॉ देशमुख तथा इंटेंसिविस्ट डॉ एस श्रीनाथ का महत्वपूर्ण सहयोग रहा. सर्जरी के तुरन्त बाद मरीज की तकलीफ जाती रही. फेफड़ों को हो चुका नुकसान स्थायी था पर उनके हृदय ने ठीक प्रकार से काम करना शुरू कर दिया. मरीज की हालत में तेजी से सुधार हुआ और सर्जरी के तीसरे दिन उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.
डॉ बख्शी ने बताया कि कभी कभी जोखिम इतना अधिक होता है कि चिकित्सक को रिस्क लेना पड़ता है. ऐसे में यदि परिवार वालों का सकारात्मक सहयोग मिले तो काम करना आसान हो जाता है. इस मामले में रिस्क बहुत था पर उसके अलावा कोई इलाज भी नहीं था. हमें खुशी है कि इलाज के वांछित परिणाम सामने आए और मरीज ठीक होकर घर लौटा.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *