Tolaghat Shiv Temple Patan where Nandi had come

टोलाघाट शिव मंदिर में हैं नंदी के पगचिन्ह, श्रमदान से हुआ था निर्माण

पाटन. पाटन से छह किमी दूर खारुन नदी और सोनपुर नाला के संगम पर स्थित टोलाघाट शिव मंदिर सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है. 74 फीट ऊंचे इस मंदिर का निर्माण हर घर से एक-एक रुपए चंदा लेकर तथा श्रमदान कर 12 पाली निषाद समाज द्वारा 52 वर्षों में किया गया. शिव मंदिर टोलाघाट को छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के नक्शे में शामिल करने यहां लक्षण झूला बनाया जाना प्रस्तावित है.
वर्ष 1930 में निषाद समाज की पहली बैठक ठकुराइन टोला में हुई थी. जिसमें यह निर्णय लिया गया था कि मंदिर निर्माण के लिए 22 गांवों में बसे निषाद समाज के लोग प्रत्येक घर से सालाना एक रुपये चंदा देंगे तथा प्रत्येक गांव क्रमबद्घ श्रमदान करेगा. वर्ष 1931-32 में टोलाघाट स्थित संगम में मंदिर बनाने नींव डाली गई थी. समाज के पहले अध्यक्ष स्व.बुधराम निषाद (परसोदा), महामंत्री स्व. माहरूराम निषाद (खट्टी), कोषाध्यक्ष पचकौड़ निषाद (ठकुराइन टोला) थे. लगातार 52 वर्षों तक मंदिर निर्माण कार्य चलता रहा और फरवरी 1984 में पूर्ण हुआ.
निषाद समाज मंदिर में भगवान राम के चरण पखारते गुहा निषादराज की प्रतिमा स्थापित करना प्रस्तावित था. वर्ष 1980-81 में मंदिर निर्माण कार्य चल ही रहा था कि खारून नदी में अचानक बाढ़ आ गई. बाढ़ का पानी उतरा तो ग्रामीणों ने देखा कि मंदिर की सीढ़ियों में एक बैल के ऊपर चढ़ने के निशान हैं.
लोगों ने यह माना कि भगवान शिव का वाहन नंदी यहां आया था और चबूतरे में आराम करने के बाद अंर्तध्यान हो गया. इस भावना के चलते ही सर्वसम्मति से मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की गई. कालांतर में मंदिर की दीवार पर भगवान राम- गुहा निषादराज वाला म्यूरल उकेरा गया.
खारुन नदी और सोनपुर नाला के संगम पर निर्मित शिव मंदिर लोगों को बरबस राजिम में महानदी-पैरी और सोंढूर नदी के संगम पर दृढ़ता से खड़े कुलेश्वर मंदिर की याद दिलाता है. लोग टोलाघाट को दूसरा राजिम मानने लगे हैं. बारिश के दिनों में जब बाढ़ का पानी मंदिर के चबूतरे को डूबोने लगता है. तब ऐसा प्रतीक होता है जैसे कोई रथ पानी के ऊपर चल रहा है. यहां प्रति वर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर मेला आयोजित किया जाता है. मेला व्यवस्था शिव मंदिर समिति करती है.

सबसे पहले, नदी के बीच के पत्थरों को कुशल शिल्पकारों द्वारा वर्गाकार काटा गया। यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य था, क्योंकि पत्थरों को नदी के बीच से निकालना और उन्हें उपयुक्त आकार देना एक जटिल प्रक्रिया थी। इसके बाद, जगती का निर्माण हुआ, जिस पर शिव मंदिर का निर्माण किया गया। इस प्रक्रिया में लगभग आधी शताब्दी का समय लगा और 1980 तक जगती का काम पूरा हो गया। शिव मंदिर का निर्माण उत्तराभिमुख दिशा में किया गया और गर्भगृह में शिवलिंग की पीठिका भी उत्तराभिमुख है, लेकिन जल-प्राणालिका दक्षिण में है। धमतरी के निकट ग्राम के शिल्पकार हरि राम द्वारा निर्मित शिवलिंग की भव्य प्रतिमा इस मंदिर में स्थापित है। मंदिर के निर्माण का कार्य सन् 1984 में पूर्ण हुआ था।
टोलाघाट में प्रति वर्ष सैकड़ों प्रवासी पक्षी भी आते हैं. इन मेहमानों की सुरक्षा ग्रामीण स्वयं करते हैं. इन सब के चलते लोग बड़ी संख्या में पिकनिक मनाने यहां आते हैं. टोलाघाट आने के लिए रायपुर, दुर्ग, अभनपुर आदि स्थानों से पक्की सड़कें हैं. क्षेत्र के अधिकांश लोग राजिम न जाकर टोलाघाट संगम में अपने प्रियजनों की अस्थियां विसर्जित करने लगे हैं.
दुर्ग से 33 किमी दूर तहसील मुख्यालय पाटन है. पाटन से सिकोला होकर रायपुर जाने वाले मार्ग पर छह किमी दूर खारुन नदी और सोनपुर नाला के संगम स्थल पर ठकुराइन टोला गांव है. ठकुराइन, परसदा, आमदी, कन्हेरा, टेकारी, खट्टी, ढोरर्ाा, लमकेनी, सुपकोन्हा, सोनपुर, खमरिया, डगनिया, पाटन, अटारी, खट्टी, बठेना, चंगोरी, चीचा, तुलसी, खुड़मुड़ी, पेंड्री और सेलूद सहित 22 गांवों में निषाद समाज के लगभग 700 परिवार निवासरत हैं.
निषाद समाज इन गांवों में बसे स्वजातियों की एकजुटता को 12 पाली के नाम से संबोधित करता है. पूर्व जनपद सदस्य चिंताराम निषाद बताते हैं कि समाज के लोगों को रायपुर के हटकेश्वर शिवालय, महादेव घाट रायपुर और राजिम के कुलेश्वर मंदिर से टोलाघाट में मंदिर बनाने की प्रेरणा 92 साल पहले वर्ष 1930 मिली थी.
वर्ष 1984 में संगम में शिव मंदिर पूर्ण होने के बाद खारुन नदी के तटों पर विभिन भक्तों द्वारा देवी-देवताओं के 15 से अधिक मंदिरों का निर्माण करवाया गया है. कुर्मी समाज द्वारा राम मंदिर, यादव समाज ने कृष्ण मंदिर, गोपाल वर्मा द्वारा एकादश मंदिर, पंजाब सनातन सभा ने गुरुद्वारा, साहू समाज द्वारा कर्मामाता मंदिर एवं धर्मशाला.
इसके अलावा श्रीधर निषाद (खट्टी), दशरथ साहू, फूलसिंह साहू, सुंदरलाल साहू, संतराम सिन्हा व हृदयराम द्वारा शिव मंदिर बनवाया गया है. इसके अलावा खेदूराम निषाद ने रामेश्वर, लीलाराम निषाद ने काली और भैरव, गोंड आदिवासी समाज द्वारा बूढ़ादेव मंदिर का निर्माण करवाया गया है. शिवालय के ठीक नीचे नंदीराज की विशाल प्रतिमा भी स्थापित की गई है.

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