गुस्ताखी माफ : बंटवारे के इस पागलपन का अंत कहां..
बंगाल एक बार फिर से चर्चा में है. बंगाल देश का वह अकेला राज्य है जिसका दो बार विभाजन हुआ. आज का पश्चिम बंगाल आजादी के समय के विभाजन का नतीजा है. पश्चिम एवं पूर्वी बंगाल की भाषा बंगाली या बांग्ला है. बंगाली आज केन्द्र के निशाने पर हैं. बांग्ला भाषा निशाने पर है. पश्चिम बंगाल निवासी या पश्चिम बंगाल मूल के तीन लोगों को नोबेल पुरस्कार मिला है. रविन्द्र नाथ टैगोर, अमर्त्य सेन और अभिजीत बनर्जी. पूर्वी बंगाल या बांग्लादेश से भी एक बंगाली मो. युनूस को नोबेल पुरस्कार मिल चुका है. जिस व्यक्ति के नाम पर आज पूरा देश डॉक्टर्स डे मनाता है, वो डॉ बिधान चंद्र रॉय एक महान चिकित्सक होने के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानी और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री थे. शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भी पश्चिम बंगाल की तूती बोलती है. इसलिए यह राज्य लोगों की आखों की किरकिरी रही है. इसी बांग्ला भाषा को आधार बनाकर दिल्ली पुलिस बड़ी गड़बड़ी कर रही है. दिल्ली में रहने वाले बंगालियों को वह रोहिंग्या साबित करने पर तुली है. रोहिंग्या म्यांमार (बर्मा) का एक जातीय समूह है. मुख्य रूप से वो राखेन राज्य में रहते थे. अब राज्यविहीन हैं और म्यांमार में उन्हें भेदभाव और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. 2017 में, म्यांमार सेना द्वारा बड़े पैमाने पर जातीय सफाई के कारण, साढ़े सात लाख रोहिंग्या बांग्लादेश भाग गए. उन्हें यहां भी शरण नहीं मिली और तब से वे इधर-उधर के देशों में जाकर रह रहे हैं. भारत एक देश है. इसके किसी भी राज्य के व्यक्ति को किसी भी राज्य में जाकर रहने या रोजगार करने का अधिकार संविधान देता है. पश्चिम बंगाल और असम के लोग बड़ी संख्या में दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में रहकर अपनी गृहस्थी चला रहे हैं. इनमें बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जो निर्माण, विशेषकर कारखानों के निर्माण में सिद्धहस्त हैं. देश-विदेश में जहां भी काम मिलता है ये समूह में वहां जाते हैं. जिस तरह रेल पटरियों के काम में आंध्रप्रदेश के गैंग मिल जाते हैं, वैसे ही कारखानों के निर्माण स्थल पर बंगाली मिल जाते हैं. इनमें से अधिकांश के पास पश्चिम बंगाल के पते पर आधार कार्ड, वोटर आईडी, राशन कार्ड, पासपोर्ट सबकुछ है. पुलिस उन्हें फिर भी उठाकर डिटेंशन सेन्टर लेकर जा रही है और परेशान कर रही है. इसी का नतीजा है कि दिल्ली से बड़ी संख्या में असम और पश्चिम बंगाल के लोग अब वापस अपने राज्य लौटने को विवश हो रहे हैं. दरअसल, यह पश्चिम बंगाल और असम को अस्थिर करने की कोशिश है. एक अजीब सी अफरातफरी का माहौल है. लोगों को रोज कहानियां सुनाई जा रही हैं. ऐसी कहानियां जिनका कोई सिर पैर नहीं है. सुनाने वालों को पता है कि यह कथा सुनने वाली जमात है. जो भी कहोगे स्वीकार कर लेगी. राजनीति के लिए राष्ट्र के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करना क्या जरूरी है?