अंतरराष्ट्रीय गोल्ड जीतने वाली दामिनी ने पिता का हाथ बंटाने उठाया फावड़ा-तगाड़ी

धमतरी। वह योग की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी है। उसने नेपाल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय योग प्रतियोगिता के फायनल में पाकिस्तान को हराकर गोल्ड मेडल जीता था। पर इस प्रतियोगिता में उसे भेजने के लिए उसके पिता को कर्ज लेना पड़ा था। फिर क्या था, इस होनहार बेटी ने अपने पिता के कंधे से कंधा मिलाकर मजदूरी की और कर्ज चुका दिया। धमतरी। वह योग की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी है। उसने नेपाल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय योग प्रतियोगिता के फायनल में पाकिस्तान को हराकर गोल्ड मेडल जीता था। पर इस प्रतियोगिता में उसे भेजने के लिए उसके पिता को कर्ज लेना पड़ा था। फिर क्या था, इस होनहार बेटी ने अपने पिता के कंधे से कंधा मिलाकर मजदूरी की और कर्ज चुका दिया। उसके पिता भवन सन्निर्माण मजदूर हैं।धमतरी। वह योग की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी है। उसने नेपाल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय योग प्रतियोगिता के फायनल में पाकिस्तान को हराकर गोल्ड मेडल जीता था। पर इस प्रतियोगिता में उसे भेजने के लिए उसके पिता को कर्ज लेना पड़ा था। फिर क्या था, इस होनहार बेटी ने अपने पिता के कंधे से कंधा मिलाकर मजदूरी की और कर्ज चुका दिया।यह कहानी है दामिनी साहू की। कालेज छात्रा ने रेजा बनकर काम करना स्वीकार किया लेकिन हिम्मत हारना उसे मंजूर नहीं था। आज दामिनी संघर्ष का जीवन जी रही लड़कियों, युवतियों और महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत से कम नहीं है। द ग्रेट इंडिया स्कूल गोदही (मंदिर हसौद) में बतौर योग शिक्षक काम करने वाली दामिनी साहू ने बताया कि कक्षा 9वीं में पढ़ते समय स्कूल के खेल शिक्षक राजकुमार साहू से योग के बारे में जाना और योग सीखा।
धमतरी। वह योग की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी है। उसने नेपाल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय योग प्रतियोगिता के फायनल में पाकिस्तान को हराकर गोल्ड मेडल जीता था। पर इस प्रतियोगिता में उसे भेजने के लिए उसके पिता को कर्ज लेना पड़ा था। फिर क्या था, इस होनहार बेटी ने अपने पिता के कंधे से कंधा मिलाकर मजदूरी की और कर्ज चुका दिया।इसके बाद घर में जब भी समय मिलता था योग की प्रैक्टिस करती थी। 5 सालों तक लगातार प्रैक्टिस के कारण वह योग की उम्दा खिलाड़ी बन गई। मई 2017 को काठमांडू में आयोजित अंतरराष्ट्रीय योग खेल की स्पर्धा में शामिल हुई। फाइनल में पाकिस्तान की खिलाड़ी को हराकर गोल्ड मेडल हासिल किया। घर के हालात ऐसे थे कि दामिनी को नेपाल की स्पर्धा में भेजने के लिए पिता परदेशी राम साहू और माता फुलवंतीन बाई ने 10 हजार रुपए कर्ज लेना पड़ा था।
इस कर्ज को चुकाना अकेले पिता के लिए बेहद मुश्किल था। उसने पिता का हाथ बंटाने का फैसला किया और वह भी उनके साथ काम पर जाने लगी। वहां दिन भर रांपा, तगाड़ी के साथ कमर तोड़ मेहनत कर उसने कर्जा चुका दिया। उसने उन लोगों को एक सबक भी दिया जो किसी काम को छोटा मानकर उसे करने से हिचकिचाते हैंं।

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